Wednesday 27 June 2012

चोरों की वस्तियाँ(Country of thieves)

                                                              चोरों की वस्ती

चोरों की वस्तियाँ हैं
एक चोर  राजा हैं, दूसरा चोर  मंत्री हैं !
 कोटवार चोर हो  ,चोर ही संत्री  हो जहाँ ,
जनता की संपत्ति , रास्ट्र की  संपत्ति ,   
सोचिये कितना निरापद हैं vaहाँ ! 

सीधा साधा एक नागरिक          
आवाज उठाया " चोरी बंद करो "         
"राष्ट्र की  संपत्ति , राष्ट्र को वापस करो "                               
नागरिक सभी उसके स्वर में स्वर मिलाया
राजधानी में  धरना दिया .   
राजा घबराया , मंत्री को तलब किया
मंत्री अपने काम में माहिर था .
देश के कानून जानता था
उसने एलान किया
" इस देश   में चोरी रोकने का कोई कानून नहीं हैं
और
चोरी का मॉल वापस करने का प्रावधान नहीं  हैं! "

जनता ने मंत्री से कहा ,
"ऐसा कानून बनाओं  जिसमे
चोरों को  शक्त सज़ा हो  , और
चोरी का मॉल वापस करने का प्रावधान हो ."

मन्त्री ने कहा ,
हम शक्त कानून का मसौदा बना देंगे
सदन के पटल पर भी रख देंगे
परन्तु वह पास हो जायगा
इसका गैरान्टी नहीं दे सकेंगे .
क्योंकि
कानून बनाने वाले जानबूझ कर
अपने पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे !

मंत्री जी ने कानून का ऐसा ख़ाका बनाया
जो किसी के भी समझ न आया .
किसी ने मंत्री को नौशिखिया
तो किसी ने बच्चा बताया .
किसी ने कहा "मंत्री जी ने ऐसा  जलेबी बनाया
जिसका हर मोड़ हर घेरा 
चोर पकड़ने के लिए नहीं
यह है चोर  के लिये रक्षा किला ".
उद्द्येश्य जब सदस्यों को समझ आया
व्हयस व्होट से उसे पास कराया .
ऊपरी सदन जिसमे अनुभवी, वुद्धिमान लोग हैं
वही किया जो मत्री जी चाहते थे ,
मसौदा को लटका दिया .

जनता भ्रमित हो रही है
उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है
किसे विश्वास करे और किसे न करे
लल्लू पंजू को छोड़िये
दिग्गज भी हैं कठघरे में .
जिसने पुरज़ोर  समर्थन किया था नीचले सदन में
ऊपरी सदन में वे बदल गए .



रचना  : कालिपद "प्रसाद"  
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Tuesday 19 June 2012

!ईश्वर !
ईश्वर    ही सत्य है . ईश्वर ही  नियन्ता है .उस पर विस्वास रखों . जो तुम्हारे नियन्त्रण में नही है , वह उसके नियंत्रण में  हैं .
ईश्वर  एक हैं . राम ,रहीम,गाड़ ,बाहेगुरू ,  अल्लाह ,  आदि  अलग अलग नाम से  अलग अलग लोग उसे  पुकारते-पूजते  हैं .श्री श्री राम कृष्ण  परम हँस जी  ने कहा  कि पानी को लोग अलग अलग भाषा में जल ,पानी , वाटर , पय इत्यादि नाम से पुकारते हैं .परन्तु वस्तु (जल ) तो एक है . ठीक वैसे ही भाषा ,देश , काल के अनुसार एक ही इश्वर के अलग अलग नाम हैं .
                             ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं .  ईश्वर पर भरोषा रखना चाहिए , ईश्वर पर भरोषा रखने का मतलब धर्म पर या कर्म कांड पर भरोषा रखना नही है .धर्म एक रास्ता है जिस पर चलकर लोग ईश्वर तक पहुँचते हैं . रास्ता अलग अलग हो सकते हैं  परन्तु मंजिल (ईश्वर )एक हैं . आवश्यक नही कि तुम पूराने घिसे पिटे  रास्ते पर चलो और कर्मकाण्ड के जंजाल में पड़ो . तुम अपने नए रास्ते पर चल सकते हो जैसे कि गौतम बुद्ध  ने  किया ,महवीर जी ने किया ,स्वामी दयानन्द जी ने किया .
                            ईश्वर सर्वव्यापी हैं .मंदिर , मस्जिद , गिरजाघर ,गुरुद्वारे के चार दीवारों की परिधि में बँधे नहीं हैं . वह तो असीम हैं ,अनन्त हैं ,सर्वत्र हैं. तुम जहाँ खड़े हो जाओगे ,ईश्वर तुमसे पहले वहाँ होंगे . मनमें अगर तुम उनकी होने की अनुभूति प्राप्त कर सको तो तुम्हे ईश्वर को ढूडने के लिए  मंदिर , मस्जिद , गिरजाघर ,गुरुद्वारे में जाने की आवश्यकता नहीं है . तुम्हारे मन ही मंदिर है . तुम्हारे   अश्रु ही गँगाजल है , भावना  ही पूजा है , भावना ही पूजा का फूल है, भावना ही फूलों की खुशबु है .ईश्वर को वही चाहिए और कुछ नहीं .


ईश्वर सबका कल्याण करें .

कालीपद "प्रसाद "