Sunday 29 July 2012

प्यार - महाऔषधि


प्यार - महाऔषधि
व्याकरण वाणी का दोष दूर करता है,
वैद्य का दवा तन का दोष दूर करता है,
योग विद्या तन -मन का दोष दूर करता है,
"प्यार " तन - मन - वाणी, सबका दोष दूर करता है।


नेताजी की समझ

समझ समझ का फ़ेर है
समझ सको तो समझो ,
मतलबी दुनिया है यह
अपना मतलब  को समझो
अपना मतलब न तो,  न समझो।

कालीपद "प्रसाद "
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Tuesday 24 July 2012

अनुभूतियाँ

                                                                         अनुभूतियाँ

इन्सान हूँ , रिस्ता जोड़ा था उस से
समझकर एक इन्सान,
इन्सान के रूप में लोगों को
मिलजाते हैं भगवान ,
यह मेरी बद नसीबी नहीं  तो और क्या ?
मुझे मिला इन्सान के रूप में एक हैवान।

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यह दुनिया धुप छांह का खेल है ,
कहीं ख़ुशी तो कहीं गम है।
गम को भुला दो , खुशियों को समेट लो ,
जो न मिला उसकी शिकवा न करो
जो मिला उसको महसूस करो।

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एक विन्दु है और
एक सिन्धु है।
सिन्धु को अभिमान है कि
उसमें असंख्य जल विन्दु हैं ,
विन्दु को गर्व है कि
वह सिन्धु का उदगम है।

                 




कालीपद "प्रसाद " 
© All rights reserved    
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Monday 23 July 2012

MAHAMAHIM PRANAB MUKHERJEE , THE 13 TH PRESIDENT


           The Election of Sri Pranab Mukherjee to the Office of President of India is an Honour not only to Sri Pranab Mukherjee but also to those people who are Honest & committed to their works and insist on PROPRIETY in administration. He will be one of those Presidents who have vast experience of functioning of Indian Parliament and the other Government institutions.
            His encyclopaedic memory,rich knowledge of the fuctioning of democratic institutions,skills of resolving sophisticated political issues will make make him different from other Presidents. Though he is the most deserving candidate to be Prime Minister of India, he is denied this opportunity due to political reasons.
            As President of India , he is no longer a member of any  political party or any alliance. He is the custodian of "The Costitution" the pillar of Democracy. People's expectations are very high. They don't want him to be a rubber stamp. He should exert himself on different issues brought to him for his approval, within the provisions of the constitutional power bestowed upon him, to safegaurd the interest of the common man. His kowledge, experience and skills must leave an unforgetable mark in the process of making India ,a corruption free country.

CONGRATULATIONS TO MAHAMAHIM PRANAB MUKHERJEE
& BEST OF LUCK

Kalipad "Prasad"
23rd July 2012 

Sunday 22 July 2012

मृग-मरीचिका

जिन्दगी के सफ़र में
हम मन्जिल की ओर बढ़ने  लगे
कदम दर कदम संभलते रहे ,
और किस्तों  में दूरियाँ नापते रहे .
अफ़सोस मंजिल हम से दूर भागती रही ,
हमे तेज और तेज भगाती रही।

मंजिल जिसको मैं समझा था ,
व मजिल नहीं थी।
एक पड़ाव था ? या मृग-मरीचिका थी ?,
आखों का दोष था? या समझ का फ़ेर ?
जब समझा , देखा , मेरी जिंदगी (मंजिल )
मेरे सामने खड़ी थी।

जिसको मंजिल को पाना है
व शिकवा नहीं करते ,
जो शिकवा में उलझते हैं
व मंजिल नहीं पाते .


रचना :  कालीपद "प्रसाद "  
©All rights reserved

Sunday 15 July 2012

मंजिल तुम्हे मिल जायगी।



ऐ मेरे आँगन के चाँद सितारे
नजर उठा कर देखो आसमान में
उमड़ते घुमड़ते कुछ बादल  में
छुपते छुपाते सूरज के सिवा
कुछ नजर नहीं आयगा नीलाम्बर में।
पर यह सच नहीं है ,यह नजर का धोखा है।
जो दिखाई देती है सच  केवल वही नहीं और भी है।
जरा सूरज  को अस्ताचल में  छुपने दो ,
फिर नजर घुमाओ आसमान में
तुम देख पाओगे आकाश गंगा में,
झिलमिलाते तारों के बारातियों में
खो जाओगे तुम अचरज में
तारें तरिकायों के महोत्सव में।

असंख्य तारों में तेज  चमकते एक तारा
उत्त्तर दिशा को करते हैं इशारा
नाम है उसका ध्रुव तारा।




पुकार पुकार कर वह , मानो
कह रहा है तुम   से , अपनी चमक से  ,
"उठो , जागो ,  भ्रमित मत हो ,
मैं भी एक नन्हा बच्चा था
तुम्हारी तरह माँ का दुलारा था।
पर  सब को छोड़कर, बन्धनों को  तोड़कर
दिल  में अटूट विश्वास लिए
मन में द्रीड संकल्प लिए
चल पड़ा था दुर्गम राह पर
अपने लक्ष को  पाने के लिए।
मैंने अपना  लक्ष पा लिया
करोड़ों अरबों नक्षत्रों में
अपने  स्थान बना   लिया।"

" तुम भी ठान लो , दृढ़ संकल्प कर लो
मन में विश्वास भर लो और चल पड़ो,
 अपने आप पगडण्डी बन जायगी
लक्ष तुम्हारे पास आएगा एक दिन
मंजिल  तुम्हे मिल जायगी।

टीम टिमाते तारों को देख
शायद तुम भ्रमित हो क़ि -
तारा बहूत छोटा होता है।
पर यह सच नहीं
हर तारा एक सूरज है
सूरज से कई गुना बड़ा है
पर हमारी नज़र कमजोर है ,
 अत: दूर से उनकी बड़प्पन
हमको   नज़र नहीं आती  है " .

"बच्चों !
तुम अपने दिल की नज़र  कमजोर मत करो
दूर द्रष्टा बनो , उदार बनो
जाति ,धर्म की दूरी को दूर करो ,
कल्पना की उड़ान से प्रेरणा लो
सुनीता के संकल्पों को चुन लो
तुम भी विचरण करोगे चाँद सितारों में
सफ़लता तुम्हारे चरण चूमेगी
मंजिल तम्हारे पास आयगी
मंजिल तुम्हे मिल जायगी।"


रचना : कालीपद "प्रसाद "
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