Thursday 17 January 2013

कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )



प्यार की गरमी उनकी
मुझे महसूस होने लगी थी
पर क्या  है यह ,एहसास अभी नहीं थी।

समझ में जब आने लगा
घिरगया मैं रिश्तों में
कोई लेता गोद में कभी,सबको मैं पहचानता नहीं।

कोई कहता चाचा -चाची
कोई कहता भाई-बहन
भाई ,बहन कैसे रिश्ते ,समझ कुछ आया नहीं।

पर सब लगते  अच्छे
करते सब दुलार मुझे,
उनके साथ हँसता था ,रोता था ,क्यों करता? पता नहीं।

समय के साथ बड़ा हुआ मैं
रिश्तों का अर्थ कुछ समझने लगा
बड़ों का प्यार कम होता गया ,क्यों हुआ ?पता नहीं।

बचपन के दोस्त की बात अब
क्या करे , घर के रिश्ते बदल गए,
प्यार के बदले ताड़न  मिलते , क्यों मिलते? पता नहीं। 

आज प्यार का एहसास है मुझे
मालूम है रिश्तों का महत्व भी ,
कभी  कमजोर ,कभी मजबूत रिश्ते, टूटते हैं क्यों ? पता नहीं।

आज रिश्तों का भरमार है
जहाँ देखो वहाँ रिश्तेदार हैं ,
फिर मैं क्यों अकेला हूँ ? मुझे कुछ पता नहीं।

पुराने रिश्ते कुछ बिखर गए
नए रिश्तों में   अब बंध  गए
पुत्र ,पुत्री ,बहु सब हैं,फिर उदास क्यों मैं? पता नहीं।

सबको हँसते खेलते देख
हँसता है मेरा मन भी
पर वे सदा हँसते क्यों नहीं? मुझे कुछ पता नहीं।

उनको दुखी देखकर
टूट जाता है मेरा दिल
 चाहता  हूँ वे सदा खुश रहें ,पर यह कभी  होता नहीं।

मेरा सुख- दुःख  उनसे है 
उनको इसका कुछ  एहसास है क्या ?
लक्षण ऐसा कभी कुछ  मैंने  , उनमें देखा नहीं।


यही है जिंदगी शायद
धुप छाँव का खेल है यह
 क्षणिक स्थिति सुख  का , दू:ख जल्दी जाते नहीं।

सुना था गुल्लक काम आता है संकट में 
रिश्ते का गुल्लक तोड़ा तो कुछ न मिला उसमें 
गौर से देखा तो ,सड़े गले नोटों जैसे, रिश्ते के कुछ अवशेष मिले।

ढूँढना चाहा उन रिश्तों को 
जोड़ना चाहा बिखरी कड़ियों को 
कोशिश हम करते रहे ,पर दिल के रिश्ते कोई न मिले।


                                                                                    क्रमश: ( प्रथम भाग 12 जनवरी को पब्लिश हुआ था )

कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित







18 comments:

  1. रिश्ते तो सहज बन जाते है पर लोग आजीवन कहाँ निभा पाते है,,,,

    recent post: मातृभूमि,

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  2. प्रभावी अभिव्यक्ति.....

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  3. बहुत बढ़िया...
    रिश्तों का गुल्लक अक्सर खाली मिलता है...
    बेहतरीन अभिव्यक्ति
    सादर
    अनु

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  4. सम्पूर्ण जीवन यात्रा का निचोड़ अपनी रचना में प्रस्तुत कर दिया आपने ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  5. wahh....Bahut umda Rachna
    Apsi risto ko paribhasit karti Rachna ...Badhai
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_5971.html

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  6. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा

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  7. घर के रिश्ते बदल गए, प्यार के बदले ताड़न मिलते , क्यों मिलते? पता नहीं।

    कुछ सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं ,क्यूँ .... पता नहीं.... !!

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  8. सही कहा है हमारे रिश्ते के गुल्लक में खाली हो चुके हैं...
    आज की परिस्थितियों को उजागर करती रचना...

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  9. आज के समय के रिश्तों की बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

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  10. दिलचस्प चिंतन .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का . यही है जीवन का यथार्थ .यथार्थ जीवन .

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  11. यही जुड़ते-टूटते रिश्तों का खेल है जीवन !

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  12. बेहतरीन कविता
    दोनों ही भाग बहुत अच्छे लगे ।


    सादर

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  13. मनुष्य की जीवन यात्रा का जो भावपूर्ण वर्णन आपने किया वो निश्चय ही सराहनीय है !!

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  14. रिश्तों की सुन्दर गौरव गाथा .....अद्भुत...!!!

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  15. बहुत खूब ...
    मंगलकामनाएं आपको !

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  16. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  17. बदलते वक्त के बदलते रिश्तों की परिभाषा ...बहुत खूब

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  18. पल- पल को समेटने की सहज कोशिश -शुभकामनायें ।।

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