Monday 18 February 2013

पिंजड़े की पंछी

इस कविता की प्रेरणा  है एक  आध्यात्मिक गाना जो मेरे मामा जी अक्सर गाया करते थे, खासकर जब कभी वे किसी कीर्तन में या  धार्मिक महोत्सव में जाते थे। इस कविता के शब्द तो मेरे है पर इसकी आत्मा मामा जी की है।हमारा ही नहीं हर प्राणी का शारीर एक विचित्र रचना है ईश्वर की। इसकी विचित्रिता आज तक कोई समझ  नहीं पाया।


चित्र गूगल से साभार 


           कैसे केशव बांधा आंशियाना
                        कैसे रंग चढ़ाया ?
        निराला है शिल्प तुम्हारा
                            तुम भी हो  निराला।
       हड्डियों का ढांचा है यह
                               जोड़ जोड़ कर बनाया,
       रक्त माँस भरकर इसमें
                            इसको पूर्ण बनाया।
               उसके ऊपर त्वचा का आवरण
                                            डालकर घर को सुन्दर बनाया,
             कौन है इस दुनिया में कान्हा
                                         कौन समझा तुम्हारी माया।
       नया है घर ,नया है साज 
                                 सुन्दर  है अन्दर बाहर,
                   पर काल -दीमक की चाल कुटिल 
                                                कण -कण कुतरता इसे  निरंतर।
        केश पकेगा ,दन्त हिलेगा 
                                  यौवन में लगेगा भाटा,
          शनै: शनै: फ़ीका पड़ेगा रंग 
                                            टूटेगा मिटटी का सुन्दर ढाँचा।
              जिस दिन होगा जर्जर पिंजड़ा 
                                   खुल जायेगा सब द्वार,
               बन्ध पंछी आजाद हो जायगा 
                                                  उड़ जाएगा आकाश के उस पार।
          इस पिंजड़े का  चंचल पंछी 
                                       उडता है केवल एक बार,
     पंख फैला उड़ा जो पंछी 
                                          लौटकर नहीं आता  दो बार।


कालीपद  "प्रसाद "  
© सर्वाधिकार सुरक्षित


    
   

31 comments:

  1. जहाँ न पहुंचे रवि ....वहां पहुंचे कवि . सम्पन्नता के मध्य मन गरीबों के घरों की सोचता है,ऐसा कम होता है-पर होता है

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  2. बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुतीकरण.

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  3. behatareen nazariya,nayab soch

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  4. सटीक और विचारात्मक नजरिया | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  6. great analytical presentation.

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  7. आपको समर्पित
    रमता जोगी बहता पानी
    ये दुनिया की रीत पुरानी

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  8. sacchaai se bharpur rachna ijse manne ka dil nahi karta ........insaan bhool jata hai........

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  9. सुंदर दार्शनिक रचना के लिए बधाई....

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  10. आभार ! राजेश कुमारी जी !

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  11. वाह ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

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  12. वाह ... रक्त मॉस पे सुन्दर शरीर चढाया ... बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण भजन है ...
    लाजवाब प्रस्तुति ..

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  13. संपूर्ण जीवन आख्याति छुपी है इस रचना में बहुत बहुत बधाई

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  14. जीवन की नश्वरता की ओर संकेत -काया कैसे रोई तज दिए प्राण ,....

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  15. जीवन की शाश्वतता का सुन्दर चित्रण, शुभकामनाएँ.

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  16. एक चेतना, सब संचालित, उसको पार लगाना..

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  17. दर्शन के दर्शन-

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  18. इसीलिये लूट सके तो लूट ले
    नहीं लूट पायेगा अगली बार !

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  19. बात तो सही है
    इस काया और ईश्वर की माया को समझना मुश्किल है

    सादर !

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  20. उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  21. आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 22 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
    आप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
    भूलना मत

    htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
    इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।

    सूचनार्थ।

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  22. बहुत सारपूर्ण प्रस्तुति !!

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  23. वाह....
    बेहतरीन प्रस्तुति...

    सादर
    अनु

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  24. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुरी
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

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  25. नव द्वारों का पींजरा तामें पंछी पौन.

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  26. pinjre ke panchhi ka sundar prastutikaran .बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार सही आज़ादी की इनमे थोड़ी अक्ल भर दे . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते

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  27. jeevan ka sampurn sar.....bahut sudar

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  28. This comment has been removed by the author.

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  29. बहुत गहरे भाव छिपे हैं इस रचना में |
    आशा

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  30. जीवन का सार-सत्य..

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