Sunday 28 April 2013

जीवन संध्या

 इंसान इस दुनियां में कहाँ से आता है ,मृत्यु के बाद कहाँ जाता है ,यह एक रहस्य है। पर जितना दिन यहाँ रहता है ,रिश्ते  नातों  में बंध  जाता है।सबको छोड़कर जाने में उसे दुःख होता है लेकिन जाना तो  है।  हर जाने वाला व्यक्ति ,पीछे रहनेवाले लोगो को अपनी अनुभव की कुछ बाते बता कर जाना चाहता है। ऐसे एक मुमूर्ष व्यक्ति की  अंतिम इच्छा है यह।






संध्या   से   पहले   भी  कभी,
                             सवेरा   हुआ  था,
अमानिशा के पहले भी कभी  ,
             पूर्णमासी का चाँद खिला था।
सूरज का अंतिम किरण है यह ,
                            जो सवेरे  उगा था ,
उद्दीप्त शिखा देख रहे हो, जिस  दीपक का तुम
यहीं इसका  जीवन-दीप जला    था।।

संध्या को  इस दीप को बुझाकर ,
                            सौ-सौ दीप जलाना है।
अमानिशा में चाँद को मिटाकर
                     असंख्य मोती चमकाना है।
प्रभात तारा चमक रहा है अब
                       बनकर संध्या का तारा।
मृत्यु मना रही महोत्सव आज ,देख
                 अस्तमित जीवन का शुक तारा।


 विदा कर दो मुझ को ऐ वन्धु
                    अब है  जीवन का अंतिम वेला।
चल रहा हूँ इस दुनियां से अब
                       जहाँ देखने आया था मैं मेला।
इस जनम में हो ना सका वन्धु
                                  कुछ उपकार तुम्हारा।
पुनर्जनम में  विश्वास हो तो ,
                             होगा मिलन मेरा तुम्हारा।


मेरी सौगंध तुमको ,मेरे लिए
                                  यदि तुम आहे भरो,
मधुर मुस्कान बिखेरो एकबार
                            आंसुयों  से ना आंखें भरो।
आसुयों के एक बूंद की कीमत
                                         मैं ना दे पायूँगा,
सिसकियों से भरी आहों को
                                     मैं ना गिन पाऊंगा।



रचना : कालीपद  "प्रसाद'
            सर्वाधिकार सुरक्षित
 
    




42 comments:

  1. एक बड़ी यात्रा चलती यह,
    हम छोटे सहभागी से।

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.आज ही आपका ब्लॉग का अनुशरण किया.

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  3. wah ! bahut sundar shabd rachna....mrityu jeevan ka sabse bada sach

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  4. सुंदर भावपूर्ण रचना

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  5. बहुत भावपूर्ण रचना।

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  6. बहुत सुंदर ...भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  7. इस दुनिया में प्रवेश मेले में प्रवेश कहना अत्यंत सार्थक। हमें इस बात को ध्यान रखना है। कविता से उसको याद दिलाया जा रहा है।

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  8. संध्या का अँधेरा नए प्रभात का सन्देश भी देता है. सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति और विचारों की सार्थकता.
    इस सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.

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  9. आपका ब्लॉग भी मैं ज्वाइन कर रही हूँ.

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    1. आपका हार्दिक स्वागत है और ब्लॉग में पदार्पण के लिए आभार !

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  10. आपका ब्लॉग भी मैं ज्वाइन कर रही हूँ.

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  11. आपका ब्लॉग भी मैं ज्वाइन कर रही हूँ.

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  12. बहुत बढ़िया,भावपूर्ण सार्थक प्रस्तुति !!!

    Recent post: तुम्हारा चेहरा ,

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  13. बहुत सुन्दर और भावभीनी रचना....

    सादर
    अनु

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  14. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 29/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  15. सुन्दर भावों से भरी रचना !!

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  16. भाव पूर्ण सार्थक रचना..

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  17. बहुत ही सुंदर रचना.....जिन्दगी के सच्चाई को लिए हुए.

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  18. उदासी लिए हुए ..भावपूर्ण रचना..

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  19. जीवन है ही ऐसा |जीवनयात्रा पूर्ण करते हुए न जाने क्या क्या देखना सुनना पड़ता है |बहुत गंभीर और मन को छूती रचना है |
    आशा

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  20. waah jivn ki sacchai belag bta di ....

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  21. बहुत सुन्दर रचना | बधाई

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  22. मृत्यु जीवन का अंत नहीं एक नई शुरुआत भर है..बहुत गहरे भाव !

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  23. आना जाना जीवन है, जो आया है वह जाएगा... मृत्यू का मोह रिश्ते नातों के हर बंधन तोड़ देता है... गहन अभिव्यक्ति... आभार

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  24. गहन संवेदनाओं से सिंचित एक प्रभावशाली एवँ भावपूर्ण प्रस्तुति ! अति सुंदर !

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  25. गहन भावों को समेटे हुये अच्छी रचना

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  26. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के "रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230) पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
    एक निवेदन-
    कृपय अपने ब्लॉग से ताला खोलिए, जिससे चर्चा के लिए मैटर सलेक्ट करके कॉपी किया जा सके...!

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    1. चर्चा मंच में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपको धन्यवाद रूप चन्द्र शास्त्री जी!

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  27. भावपूर्ण अभि‍व्‍यक्‍ति..

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  28. संवेदना के धरातल से उठती भावपूर्ण अभिव्यक्ति
    गहन अनुभूति की सहज रचना
    सार्थक
    उत्कृष्ट प्रस्तुति


    आग्रह है इसको भी पढें
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  29. सुंदर रचना भाव पूर्ण ......

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  30. निःशब्द करती

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  31. बहुत खूब ...सार्थक रचना

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  32. आखिर अंतिम पडाव पर यह समझ आता है कि यह जीवन एक मेला था, काश यह शुरूआत से समझ आ सकता तो जीवन जीने का ढंग ही कुछ ओर होता, बहुत ही सुंदर विचार.

    रामराम.

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  33. हर संध्या से पहले सवेरा होता है; अंतिम वेला से पहले... जीवन जैसे खूबसूरत मृत्यु भी हो... भावपूर्ण रचना, बधाई.

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  34. बहुत प्यारे से जज़्बात लिए खूबसूरत रचना

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