Thursday 8 August 2013

नेताजी सुनिए ! **




गरीबों की मौत पर तमशा  होता है ,गौर से देखिये
मुआबजा का एलान होता है ,पैसा नहीं ,तमाशा बंद कीजिये।

गरीबी  के बदले गरीब को मिटाना आसान है
मिड डे भोजन में जहर देकर ,मारना बंद कीजिये।

हर ज़ुल्म के पीछे कोई शातिर कातिल जरुर है 
कातिल को सुरक्षा देती सरकार ,जाँच की नौटंकी बंद कीजिये।

कानून का हवाला देते हैं ,क़ानून के बनाने वाले 
अपने हक़ में क़ानून को तोड़ मरोड़ना बंद कीजिये।

लांघकर स्वार्थ की दहलीज़ ,बाहर आकर देखिये 
रूह डर से काँप जाएगी ,निर्धन की जिंदगी जी कर देखिये। 

गरीब के भूख पर ज्यादा भाषण मत झाड़िए 
खाद्य सुरक्षा बिल ही नहीं ,उनकी भूख मिटाकर देखिये।

"जेड " सुरक्षा महँगी है,इसे आप रख लीजिये 
" ब्रेड " सुरक्षा  सस्ती है , इसे गरीब को दे दीजिये।


कालीपद "प्रसाद "


© सर्वाधिकार सुरक्षित
 




29 comments:

  1. बहुत खूब सुनाया है!

    उन्हें सुनना ही होगा!

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  2. बहुत सही कहा है |
    आशा

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  3. kya baat hai....kash ye rachna un netaon tak pahunch jaye......

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  4. आपका ह्रदय से आभार कुलदीप ठाकुर जी !

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  5. ब्रेड सुविधा....
    बहुत बढ़िया......

    सार्थक रचना.

    सादर
    अनु

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  6. सही प्रश्न उठाया है और सही सुझाया है।

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  7. बहुत सटीक और सामयिक.

    रामराम.

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  8. बहुत खूब चेतावनी आभार इस पर सब चिंतन करें

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  9. बहुत बढिया सटीक और सामयिक..

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  10. सच्ची बातें अच्छी बातें कहती हुई बढिया प्रस्तुति ।

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  11. सार्थक रचना

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  12. आज के हालात का सही चित्रण...

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  13. बहुत खूब। सार्थक प्रस्तुति

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  14. सच बयानी के लिये जोरदार समर्थन !

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  15. गरीबी के बदले गरीब को मिटाना आसान है
    मिड डे भोजन में जहर देकर ,मारना बंद कीजिये।

    मन में बहुत आक्रोशा होता है ऐसी घटनाओं को देखकर । बेबाक रचना के लिए आप प्रशंसा के पात्र हैं ।

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  16. शायद आपने सुना नहीं जिनके पास सत्ता होता हौं उनके पास कान नहीं होते

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  17. खरी खरी कही खूब कही .कहते रहिये यूं ही .बढ़िया पोस्ट है .

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  18. मन प्रशन्न हुआ , आपके बेबाक लेखन से प्रभावित भी यूं ही लिखते रहें

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  19. आक्रोश व्यक्त करती अर्थपूर्ण रचना!

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  20. आदरणीय आपकी यह प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
    http://nirjhar.times.blogspot.in पर आपका स्वागत् है,कृपया अवलोकन करें।
    सादर

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  21. अच्छी सुनिया है नेता "जिन "को। शरम ह्या उनको ज़रा भी नहीं है मुआवजा बांटते हैं।

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  22. जोश और आक्रोश का मिला जुला रूप ...लेखक कि कलम में ये ताकत होनी ही चाहिए

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  23. बेहतरीन रचना..

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