Thursday 30 January 2014

सियासत “आप” की !**




हिलगई नींव अब खानदानी महल की
'खास' अब लगाने लगे टोपी 'आम' की l 

बढ़ गई धड़कन सियासत के मुक्केबाजों की 
बेहोश हो रहे बार बार,खाकर मुक्का एक 'आम' कीl 
 
अभिमानी शक्तिशाली भारत भाग्य-विधाता
लोकपाल पास किया ,डर सताए 'आम' की l

भ्रष्टाचारी, बाहुबली पड़ गए सोच में
बिना धन ,बिना बल जीत हुई 'आम' की l  

बड़े बड़े महारथी धुल चाटे समर में
नौशिखिया प्रतिद्वंदी चुनाव जीते 'आम' की l 

कालाधन बाहुबल काम ना आया चुनाव में
हवालात का डर है, भृकुटी तनी है 'आम' की l 

दिल्ली गया ,दरबार गया ,मिटा बरसों की साख
अगली राज किसकी,कांग्रेस,बीजेपी या 'आप' की l

चिंता यही सताती है नमो और राहुल बाबा को
'आप' को कुछ खोना नहीं,जीतेंगे तो राज 'आप' कीl 

घिर गए विवादों में अनुभवहीन जोशीला मंत्री जी
जोश तो जरुरी है ,खोना नहीं होश मंत्री जी l 

जीत का “प्रसाद”मिलकर चखेंगे आम हो या ख़ास
यही वायदा है ,संकल्प भी है आम के 'आप' की l 

कालीपद "प्रसाद "
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Monday 27 January 2014

वसन्त का आगमन !



                                                


पलास का सिंदूरी लाल फुल, .......यह सुचना दे रहा है 
                         ऋतुराज वसन्त आ रहा है |

वासंती हवा कानों को छूकर,          आहिस्ता आहिस्ता फूस फुसाकर 
                 वसन्त का आगमन का सन्देश दे रहा है |

धरती कर रही है श्रृंगार प्यार से,         नए फुल, नवांकुर,किसलय से
                  गुन  गुनाकर भौंरें स्वागत गीत गा रहे हैं  |  
  
सोलह श्रृंगार धरती का,                     अल्हड़ उन्माद यौवन का 
                        अधैर्य स्वागत कर रहा है |    
                                        

 
तितलियाँ घूम घूमकर,                      स्वागत सज्जा देख रही है 
              रंग विरंगे फूलों में अपना रूप निहार रही है |

मकरन्द के प्याषी तितलियाँ               चूम चूमकर गुल  को    
                             प्यार का इज़हार कर रही है |


कोयल का मधुर गान                          अचेतन रति पति पर 
                        काम रसायन ढाल रहा है|

चिड़ियों की चहक,फूलों की महक            अलियों का गुंजन
                          अंतर्मन  को गुद गुदा रहा है |
                                        

इन्द्र धनुषी मोहक रूप धरा का              दिल में उल्लास भर रहा है 
                     लाल पीले रंग अनंग को जगा रहा है |


    कालीपद "प्रसाद "
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Tuesday 21 January 2014

मौसम (शीत काल )


 

प्रकृति की देखो  अद्भुत करिश्मा
प्रमुख ऋतू ग्रीष्म ,शीत ,वसंत ,वर्षा
ग्रीष्म में पर्वत पर जलती दावानल
जलकर भस्म हो जाते हैं जंगल|




वर्षा में प्रकृति बरसती है जी भर
प्यासे जीव का प्यास बुझाती
जलप्रलय का खेल भी कभी कभी
मन मौजी से खेलती है प्रकृति |





शीतकाल का क्या कहना
पहाड़ हो या भूमि समतल
पहाड़ों पर होता है हिमपात
रवि-रश्मि भी हो जाती है शीतल !

रजनी रोती है शाम से सुबह
रवि -राज के विरह में 
धरती पर के सब तृण पत्ते
भीग जाते उसके आँसुओं में |

आँसुओं  के धुँध के चादर
बिछ जाती है अवनी पर
उठाती है यह चादर धरती
तब तक हो जाता है दोपहर |

ऊनी  कपडे स्वेटर ज्याकेट
कोई ओडते हैं मोटा कम्बल
घर के अन्दर दुबक जाते सब
'अलाव 'है गरीबों का संबल |





निर्मल श्वेत हिम-चादर से
ढक जाता है गिरि शिखर
पादप भी ओड़कर हिम-चादर
सर्द हवा से कांपते थर थर |






श्वेत रास्ता ,श्वेत झरना, श्वेत है मुकुट पर्वत की
श्वेत है पेड़ पौधे,श्वेत है झील,श्वेत है छतें घर की
श्वेत चाँदनी फैली जब  श्वेत  हिम -चादर पर
उतरती है  अप्सराएँ यहाँ छोड़ देवसभा  इन्द्र की |

मित्रों ! प्रवास के कारण अगले १५ दिन तक नियमित रूप से ब्लॉग पर आ नहीं पाऊंगा परन्तु उसके बाद जरुर हाजिर हो जाऊंगा !


कालीपद"प्रसाद "
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Monday 13 January 2014

हम तुम.....,पानी के बूंद !

सात फेरों के बंधन में बंध गए हम 
दो शरीर,एक आत्मा हो गए हम !
एक एक विन्दु सम जीवनधारा में
बहते रहे साथ साथ ,
डूबकर प्रेम के अथाह सागर में
तय करते रहे जीवन पथ |
दरिया में कुछ लहरें उठी 

गिरी ,फिर उठी ,
इस उठापटक ने ऐसा कुछ करना चाहा 
प्रेम-बंधन के डोर को तोडना चाहा 
कोशिश बहुत किया पर तोड़ ना सका ,
पर जख्म कुछ ऐसा दिया 
मन,प्राण सब घायल हुआ |
"सात फेरों का अटूट बंधन है "
यह विश्वास टूट गया,
कातिल ज़ख्म ने बंधन को ढीला किया
फिर भी हम बहते रहे साथ साथ
नहीं छोड़े एक दुसरे का हाथ |
बहते बहते कभी तुम मुझ से और 
कभी मैं तुम से टकराता
और यूँही चलती रही हमारी जीवन की धारा|
लहरों की यूँ उथलपुथल 
हमदोनो पर भारी पड़ा|
कभी तुमको ले जाता मुझ से दूर 
कभी मुझको ले जाता तुमसे दूर |
धीरे धीरे बढती गई दुरियाँ
हम हो गए बहुत दूर |
अब मैं एक किनारे में हूँ तो 
तुम दुसरे किनारे 
मानो अनन्त काल से है प्रतीक्षारत 
मिलने की आस लिए नदी के दो किनारे |
धारा यूँ बहती जायगी ,
मिल जायगी सागर में ,
तुम खो जाओगी,मैं खो जाऊंगा 
सागर के अतल गहराई में |
असंख्य धाराएं होंगी ,
होंगे असंख्य बुँदे हम तुम जैसे 
कौन किसको पहचानेगा ?
क्या हम मिल पायेंगे फिरसे ?
यही चिंता सताती मझे 
करती मुझे बेहाल ,
कैसे काटूँगा दिवस रजनी तुम बिन 
कैसे जानूंगा तम्हारा हाल.......... 

क्या दो आत्माओं के प्रेम का यही  है अंत ?


कालीपद "प्रसाद " 
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Friday 10 January 2014

आम आदमी !

आम आदमी का " आप "सबको प्रिय है आज
असंभव को संभव किया है आम आदमी आज |

निराशा में आशा जगाया ,आम आदमी आज
झोपड़ी में दीप जलाया "आप "के आदमी आज |

सियासतों के पंडितों पर गिरा है आज गाज
मंत्री संत्री सब डर रहे है, आम आदमी से आज |

दिल्ली में बैठे हैं पर दरवार से दूर भ्रष्टाचारी आज
खौफ खाकर ,दुबक कर बैठे हैं "बाहुबली " आज |

वी आई पी सब दुखी है गिरा लालबत्ती पर गाज
"आप "का एलान है " हटाओ लाल बती आज !

कांगेस गमगीन है ,उदास हैं ,छीन गया है राज
"आप" के हाथ ऱाज है अब ,जनता  खुश है आज|

पानी दिया मुफ्त, विजली किया है सस्ता , किन्तु
वायदा पूरा करता कि नहीं ,जनता देख रही है आज |


रिश्वतखोर द्विविधा में हैं रिश्वत लें या ना लें
केजरीवाल का भूत पीछे है,सहम जाते है आज !


कालिपद "प्रसाद "
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Sunday 5 January 2014

सर्दी का मौसम! **


शीत ऋतू --- गरीबों पर सितम,सैलानियो का प्रियतम!
                             



                                                बाज़ार ,दुकाने बंद

   

सर्दी का मौसम ,ये बर्फ ,ये बर्फीली हवाएं
ढा रही है सितम ,डरा रही है नभ से काली घटायें
इस कहर से डरकर इंसान हो गए हैं घर में बंद
दुकान बंद,बाज़ार बंद ,इतनी ठण्ड हैं फिजायें |





                                                   सड़क पर लोग
 

 सर्द रात्रि में सड़क पर लोग ठण्ड से ठिठुर रहे हैं 
 कम्बल ओड़कर हाथ पैर सिकुड़कर सो रहे हैं
कम्बल सम्बलहीन अलाव  से ठण्ड भगा रहे हैं
कहीं पी पी कर गरम चाय ,रवि का राह देख रहे हैं|






                                                    पंगु हवाई जहाज

बर्फ और धुँध ने हवाई जहाज को पंगु बना दिया है
धरती पर रेलगाड़ी  को  ब्रेक लगा दिया है
सड़क पर वाहनों का रफ़्तार कम कर दिया है
इंसान की  वुद्धि और क्षमता को ललकारा है |





                                                     हिमपात

पहाड़ों पर कहीं हिमपात हो रहा है
कहीं ओले तो कहीं हिमजल की वर्षा हो रही है
 ठण्डी बर्फीली हवा शीतलहर बन समतल को भी
अपने मजबूत आगोश में ले लिया है |


   
                                                     सैलानी

सैलानी बर्फ के सफ़ेद चादर पर नाच रहे हैं
कहीं स्केटिंग तो कहीं बर्फ से खेल रहे है
कपास के फाहें जैसे गिरते बर्फ के कण
मानो सैलानियों पर श्वेत फुल बरस रहे हैं |

कालीपद "प्रसाद "
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