Tuesday 27 May 2014

ग्रीष्म ऋतू !***



चित्र गूगल से साभार
                                                   
                                                                                         


अग्निवाण बरस रहा है ,रूद्र कुपित सूरज
धरती का ढाल-बादल को छेद डाला है सूरज
धू धू जल रही है धरती ,सुख रहे हैं नदी नाले
स्वार्थी मानव के दुष्कर्म से मानो क्रोधित है सूरज |

जलहीन सरोवर है ,पशु पक्षी तृषित हैं
जल के खोज में सब इधर उधर भाग रहे हैं
काटकर जंगल मानव ,छाँव को छीन लिया है
मुमूर्ष पशु ,पक्षी,वृक्ष को पावस का इन्तजार है |

कोमल टहनियाँ वृक्ष लता के मुरझा रहे हैं
मुरझे चेहरों के बीच में एक हँसता चेहरा है
सुख, दुःख, हँसना, रोना जीवन का अंग है
गुलमोहर का खिला चेहरा यही हमें सिखाता है |

धरती ने भी इस मौसम में दिया कुछ अनुपम उपहार
रसीला आम ,काली जामुन,लीची ,आडू और अनार
गर्मी भगाने खीरा,ककड़ी,तरबूज,करौंदा और अंजीर 
खट्टा मीठा अंगूर और अनारस, रस का सागर |

कालीपद 'प्रसाद"
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Sunday 18 May 2014

रिश्ते!**


रिश्तों का पौधा बड़ा नाजुक होता है
प्यार-खाद,स्नेह-पानी से सींचना पड़ता है
व्यवहार में अपनापन,बातों में सहानभूति हो
वर्ना रिश्तों का पौधा मुरझा जाता है |

हँसना,रोना,रूठना,मनाना रिश्तों में जायज है
इन सबके सीमाओं में रिश्ता  बंधा रहता है
इन सीमाओं की अतिक्रम न करे कोई कभी
गुस्से के आग में  जल रिश्ते  जाते हैं |  

मधुरस का गिलास लोग छीन ले जाते हैं
गम का बोतल हाथ में थमा जाते हैं
सोचता हूँ मय पीकर गम को भुला दूँ
नफरत की दुनिया में मय, प्रेम जगाता है|

मन वेचैन है ,नींद आँखों से गायब है
ख़्वाब कैसे आये ,पलकों में दुरी है  
दो बूंद मय गले से उतर जाय गर
अपने आप पलकों का संगम हो जाता है |

छोटी छोटी बातों में जब हो जाते है नाराज
भूलकर लिहाज खोल देते हैं दिल का राज
बह निकलते है जमा नफरत का सैलाब
खुल जाती है असलियत ,दिखावा का हमराज |



कालीपद 'प्रसाद '
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Sunday 11 May 2014

बेटी बन गई बहू**



माँ बाप की दुलारी बेटी 
सबकी आँखों की तारा बेटी
कभी झूले में झूलती बेटी
चीखकर शोर मचाची बेटी |

माँ के आँचल में छुपती बेटी
तोतली बोली बोलती बेटी
नखरे करती प्यारी बेटी
लाड जताती लाडली बेटी |

नाजों से पली नाजुक बेटी
बड़ी होकर हुई जवान बेटी
पढ लिखकर हुई शिक्षित बेटी
साजन घर जाने तैयार बेटी |

साजन आया लेकर प्यारी डोली
विदा होकर बेटी ससुराल चली
बहन-भाई, पिता-माता रो कर बोली  
खुशियों से भरी रहे तुम्हारी झोली |

ससुराल में जब उतरी डोली
सास ने पूछा बहु तुम क्या लायी ?
मेरे लिए ,धर के जो साजो सामान
दिखलाओ अभी ,सभी पड़ोसन आयी!

बहू बोली "माँ...........
चीज जो टूटने फूटने वाली
ऐसे कोई चीज मैं नहीं लाई
खुशबु तो दिखाई नहीं देता है
पर वह सबका मन मोह लेता है |

आपके लिए मेरे माँ बाप की दुआएँ लायी
श्रद्धासुमन से सजी पूजा की थाली लायी
श्रद्धासुमन अर्पित करुँगी आपके चरणों में
पूजा करुँगी आपकी जब तक जान है शरीर में |"

पड़ोसन ने कहा किस भिखारिन को लाई
साथ में कुछ भी दहेज़ नहीं लाई
मेरी बहु घर भर सामान लाई 
फिर भी मैं उसे मायके को भगाई|

सास पड गई सोच में ,कुछ समझ ना आयी
पड़ोसिन के सामने हो रही थी नाक कटाई
दूल्हा आया सामने बचाने सास बहू को ,
”मौसी” शुरू किया कहना संबोधन कर पड़ोसिन को |

आपकी बहू  नहीं करती नौकरी
दहेज़ लाई होगी कोई पांच सात लाख की
मेरी माँ की बहू  नौकरी करती है,
साल में कुल चौदह लाख कमाती है|

लेन देन की मामले में आप थोड़ी कच्छी हैं
रिश्ते निभाने में मेरी माँ बहुत पक्की है
माँ  हमारी बहुत  अनुभवी जौहरी  हैं
तभी तो उसको माँ ने अपनी बहु बनाया है |

कुछ सालों में वह करोड़पति  होगी
हमको भी वह करोड़पति का पति बनाएगी
आपके घरके सब साजो सामान पुराने हो जायेंगे  
हम नए घर में नए सामान के साथ ख़ुशी मनाएंगे |

किन्तु ........
मौसी, चाची तुम सब सुनो ध्यान से
एक बात और तुम सबको बताना है  
हमारे देश का कानून यह कहता है
दहेज़ लेना/देना एक दंडनीय अपराध है |

बहू  का मूल्य ना आंको नौकरी ना दहेज़ से
आंको उसके सुविचार ,सद्व्यवहार ,संस्कार से
दहेज़ की बात करके ना उसके दिल को दुखाओ
और ना क़ानून के फंदे में अपनी गर्दन फंसाओ |

गर उसको समझो तुम अपनी बेटी
वह सदा हो जायेगी तुम्हारी  बेटी
तुम्हारा स्नेह,प्यार,ममतामयी गोद पाकर वह
माँ बाप से विछुड़नेका दुःख भूल जाएगी वह |

धरती से उखाड़कर एक पौधे को
जब रोपते हो कहीं नए खेत में
उसको भी समय लगता है कुछ
नई धरती पर जड़ जमाने में |

बहू है नयी ,जगह नई है ,नया है घरद्वार
हँसकर करो स्वागत उसका,लगे उसको अपना घर
एक घर छोड़कर ,दुसरे घर में बहू बनकर आती है
सरबत में शक्कर ज्यों घुलकर मिठास वह फैलाती है|

कालीपद "प्रसाद"
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Sunday 4 May 2014

ऐ जिंदगी !




ऐ जिंदगी !
जरा तू बता
तेरी रज़ा क्या  है ?  

कभी तू हँसाता है
कभी तू रुलाता है |
जब मैं चांहू कि मैं हँसु
तब तू मुझे रुलाता है ,
रो रो कर मैं जब
गम से कर लिया प्यार ,
गम के बादल के पीछे से हंसकर
आशा –किरण बनकर
तू करता है दूर
मेरे मन का अन्धकार !
कभी सुख कभी दुःख
कभी उजाला कभी तम,
कभी हँसी कभी रोना
कभी ख़ुशी कभी गम !
धन की बारिश कभी
कभी मुफलिसी नंगा तन
धुप छांह के इस खेल में
टूटता है मेरा तन मन ,
विषमता तुझे प्यारी है
तू ही बता ऐ जिंदगी
तेरी रज़ा क्या है ?

भक्ति से करता हूँ तेरी सेवा
आस्था से करता हूँ तेरी पूजा
मन में कुछ शंकाएं उगाकर
भक्तिहीन बना देता है मेरी पूजा |
शंकित हूँ ,...सोचता हूँ ...
क्या मैं  एक आस्तिक हूँ ?
या मैं  एक नास्तिक हूँ ?
दिया दुःख, सुख से अधिक
यह तेरी क्या माया है
ऐ जिंदगी जरा तू ही बता
तेरी रज़ा क्या है ?

जब करने लगता हूँ विश्वास तुझे
तू  देता है तब , धोखा मुझे,
संदेह के  झूले में झुलाता है हरदम
आगे नहीं बढ़ पाता मैं ,
लडखडाता है मेरा कदम ,
क्या करूँ  क्या ना करूँ ...?
सब कुछ अनिश्चित है
ऐ जिंदगी! जरा तू ही बता
तेरी रज़ा क्या है ?

कालीपद "प्रसाद "
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