Tuesday 30 September 2014

शुम्भ निशुम्भ बध :भाग 7


आप सबको शारदीय नवरात्रों  ,दुर्गापूजा एवं दशहरा का  शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं ! दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !


भाग ६ से आगे 
         १२७
मात्री गणों का
असुरों का हनन
करते देख
दैत्य  सैनिक भीत
डर के भाग गए |
        १२८
भागते देख
रक्तबीज नमक
दैत्य क्रोध में
युद्ध के लिए आये
वर प्राप्त दैत्य था |
       १२९
रक्त की बूंद
उसके शरीर से
भू पर गिरे
शक्तिशाली दूसरा
दैत्य पैदा हो जाता |
         १३०
लेकर गदा
हाथ में रक्तबीज
करने लगा
युद्ध इन्द्र शक्ति से
भयंकर संग्राम ||
         १३१
तब ऐन्द्री ने
रक्तबीज को मारा
अपना बज्र
बज्राघात घायल
रक्तबीज का रक्त .....
          १३२
गिरा भू पर
हर बूंद खून से
उत्पन्न हुए
अनुरूप उसके
एक और असुर |
           १३३
दैत्य रक्त के 
जितने बूंद गिरे
उत्पन्न हुए
असुर उतने ही
रक्ताबीज समान |
          १३४
पराक्रमी थे
सब बलवान थे
वीर्यवान भी
अस्त्र शस्त्रों के साथ
युद्ध करने लगे |
          135
मात्री गण भी
असुरों के सहित
संग्राम किया
पुन; पुन: बज्र से
रक्तबीज को मारा |
           १३६
हजारों दैत्य
तब पैदा हो गए
रक्तबीज सा
सहस्त्र महादैत्य
सम्पूर्ण युद्ध स्थल |
         १३७
असुरों द्वारा
डराया देवताओं भी
हुआ चिंतित
देख देवताओं को
चिंतित ओ उदास |
         १३८
काली देवी ने
फैलाया मुख और
गिरने वाले
हर रक्त बिंदु को
मुहँ में ले पी लिया |
          १३९
महादैत्य के
रक्त को पीती हुई
प्रत्येक बूंद
रण में विचरती
महादेवी चामुण्डा|
         १४०
दैत्यों का सारा
रक्त क्षीण हो गया
क्षीण असुर
रक्तबीज का रक्त
समाप्त हुआ सब |
        १४१
चामुण्डा देवी
छोड़ा नहीं बूंद भी
पी लिया सब
चण्डिका मारी बज्र
निहत रक्तबीज |
          १४२
हर्षित देव
अनुपम आनन्द
देवलोक में
सब मात्री गण  भी
तृप्त रक्त पान से |


नवरात्रों की शुभकामनाएं |
              क्रमशः

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday 28 September 2014

शुम्भ निशुम्भ बध -भाग 6


                                                           

                                                                 

                                                                      भाग ५ से आगे

       १०५ 
विष्णु की शक्ति
धर रूप वैष्णवी
हाजिर हुई
हाथ में शंख चक्र
और गदा पद्म भी !
          १०६
ब्रह्मा की शक्ति
हु -बहु ब्रह्म रूप
कमंडलू से
सुशोभित ब्राह्मणी
हाथ में अक्ष माला !
           १०७
देवी शिवानी
महादेव की शक्ति
बृषभारुढ़
चन्द्रमौली शंकर
त्रिशूल-हस्त शिव |
       १०८
इन्द्र की शक्ति
बज्र हाथ में लिए
उपस्थित थीं
ऐरावत आरुड़
इन्द्र के जैसे रूप |
        १०९
अनेक शक्ति
है श्रीहरि की शक्ति
अनेक रूप
धर वराह रूप
शक्ति नृसिंह के भी |
        ११0
 देवों की शक्ति
उसी देव -रूप में
हुआ हाजिर
चंडिका के सम्मुख
रण हेतु प्रस्तुत  |
         १११
 इसके बाद
महादेव ने कहा
देवी चण्डिका
मेरी ख़ुशी के लिए
दैत्यों को संहारो ||
        ११२
उग्र चण्डिका
प्रगट हुई शक्ति
देवी काया से
कहा हे महादेव
 हे  देव आदि देव |
          ११३
जाइये आप
शुम्भ निशुम्भ पास
दूत रूप में
कहें दैत्य द्वय से
और अन्य दैत्यों से .....
          ११४
हे दैत्यों सुनो
यदि तुम्हे जीवित
जाना है घर ....
पाताळ लौट जाओ
युद्ध को यहीं छोडो |
          ११५
त्रिलोक राज्य
इन्द्र को मिलजाय
समाप्त युद्ध,
अभिमान हो तुम्हे
और यदि घमंड .....
        ११६
आओ युद्ध में
योगिनियाँ तुम्हारे
कच्चे मांस से
बहुत तृप्त होंगी
चबाकर हड्डियाँ |
             ११7 
शिव शंकर
दूत के कार्य में  भी
अति निपुण
कहा दैत्य द्वय को
चण्डिका के वचन |
          ११८
शिव के मुँह
सुन देवी वचन
महादैत्य भी
क्रोध से भर गए
तीब्र  कांपने लगे |
        ११९
कात्यायनी थीं 
विराजमान जहाँ
उधर गए
भरकर अमर्ष
अस्त्रों की वर्षा किये |
         १२०
तब देवी ने
आसान लड़ाई में
दैत्य -अस्त्रों को
जल्दी से काट डाले
जैसे खेल खेल में |
         १२१
दैवी शक्तियां
किया दैत्य संहार
अस्त्रों शास्त्रों से
वैष्णवी ने चक्र से
शिवानी र्त्रिशुल से |
          १२२
कार्तिकेय की
शक्ति ने भी शक्ति से
किया प्रहार
भयानक दैत्यों का
रक्त से लाल भूमि |
          १२३
इन्द्र के बज्र
शक्ति प्रहार ,मृत 
सैकड़ों दैत्य
युद्ध क्षेत्र में मचा
दैत्यों में हाहाकार |
         १२४
शिवदूती के
प्रचण्ड अट्टहास
मुर्च्छित दैत्य
जो गिरे पृथ्वी पर
काली के बने ग्रास |


नवरात्रों की  हार्दिक शुभकामनाएं
 क्रमशः

कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित




Saturday 27 September 2014

शुम्भ निशुम्भ बध - भाग ५

  

                                                                              
माँ स्कंदमाता


      आप सबको शारदीय नवरात्रों  ,दुर्गापूजा एवं दशहरा का अग्रिम शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं ! दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !


                                                              भाग चार से आगे 
           ८५
महा असि से
देवी ने किया वार
दैत्य चंड को
केश पकड़कर
मस्तक काट डाला |
           ८६
चंड को मरा
देखकर मुंड भी
 क्रोधित हुआ
गुस्से में हो पागल
देवी की ओर दौड़ा
           ८७
क्रोधित देवी
तलवार वार से
घायल कर
पराक्रमी दैत्य को
गिरा दी धरती पर |
          ८८ -८९
चंड-मुंड का
पतन देखकर
व्याकुल सेना
चंड और मुंड का
हाथ में मस्तक ....
कालिका देवी
चण्डिका के समीप
पहुंच गई
प्रचण्ड अट्टहास
करते हुए कहा ..
        ९०
हे देवी ! मैंने
चंड -मुंड नामक
दैत्य मस्तक
तुम्हे भेंट किया है
इसे स्वीकार करो |
           ९१
शुम्भ -निशुम्भ
करेगा अब युद्ध
होकर क्रुद्ध
कल्याणमयी चंडी
उनको तुम मारो |
          ९२
देवी चण्डिका
मीठी वाणी में कहा
काली देवी से
चंड मुंड घातिनी
तुम्हारी होगी ख्याति ...
            ९३
चराचर में
"चामुंडा " के नाम से
विख्यात होगी
पूजेंगे सब भक्त
पूर्ण हो मनोरथ |
     
रक्तबीज बध

     ९४
प्रतापी शुम्भ
मन में बड़ा क्रोध
दैत्यों का राजा
चंड मुंड के बध
सेना संहार ,क्षुब्द |
       ९५
युद्ध के लिए
सम्मूर्ण दैत्य सेना
लड़ने चले
दैत्य सेनापति को
दिया आज्ञा  शुम्भ ने |
           ९६
कम्बू कालक
दौर्हद ,मौर्यआदि
प्रस्थान करे
कालकेय असुर
युद्ध के लिए चले | 
            ९८
चण्डिका देवी
देख दैत्य सेना को
गुंजित किया
पृथ्वी और आकाश
धनुष टंकार से |
           99
तदनन्तर
देवी के सिंह किया
तीव्र दहाड़
अम्बिका ने घंटे की
ध्वनि को बढ़ा दिया |
           १००
सिंह दहाड़
धनुष की टंकार
दिशाएँ गूंजी
तीव्र घंटे की ध्वनि
भयोत्पादक नाद |
          १०१
दैत्यों की सेना
सुन विशाल नाद
एकत्रित हो
घेर लिया क्रोध में
चंडिका- चामुंडा को |
          १०२
काली देवी ने
भयंकर शब्द से
बड़ा मुख को
और भी बड़ा किया
विकराल  चेहरा |
          १०३
तदनंतर
असुरो के विनाश
देवताओं के
अभ्युदय के लिए
आई दैवी शक्तियां |
        १०४
दैवी शक्तियां
धर उन्ही के रूप
आई समक्ष
देवी चंडिका पास
महा संग्राम हेतु |


नवरात्रों और दुर्गापूजा का हार्दिक शुभकामनाएं !

(क्रमशः)

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित




Friday 26 September 2014

शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ४

                  



        आप सबको शारदीय नवरात्री ,दुर्गापूजा एवं दशहरा का अग्रिम शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं ! दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा नवरात्री में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !
    भाग ३ से आगे 

           ६४
क्रोध में भरी
विशाल दैत्य सेना
चतुर्दिशा से
जगदम्बा को घेरा
धीर वुद्धि गंभीरा |
         ६५
जगदम्बा ने
दैत्य सैन्य दलन
शक्ति से किया
देवी वाहन  सिंह
दैत्यों का नाश किया |
             ६६
पंजो से मार
किया बहु संहार
दैत्यों की सेना  
नखों से कितनों के
पेट ही फाड़ डाले |
          ६७
सेना संहार
जानकर असुर
क्रोधित हुआ
चंड -मुंड नामक
महादैत्यों को हांका |
           ६८
हे चंड -मुंड
बड़ी सेना लेकर
तुम दोनों भी
युद्ध भूमि में जाओ
उसे घसीट लाओ |
         ६९
दम्भी देवी को
झोंटे पकड़कर
या बांधकर
शीघ्र यहाँ ले आओ
देर ना करो जाओ |
          70
चंड -मुंड बध
           ७१
तदनन्तर
शुम्भ आज्ञा लेकर
चंड -मुंड की
चतुरंगिनी सेना
रणभूमि चल पडा |
         ७२
सुवर्णमय
उच्च हिम शिखर
हिमालय के
दैत्यों ने सिंह पर
बैठी देवी को देखा |
         ७३
मन्द मन्द वे
मुस्कुरा रही थी
रहस्यमयी |
उद्योग किया दैत्य
देवी को जो धरना था |
         ७४
तत्परता से
धनुष तान लिया
किसी ने शूल
कुछ दैत्य देवी को
घेर खड़े हो गए |
          ७५
भगवती भी
क्रोध में काली पड़ी
हो गई टेढ़ी
ललाट के भौंहे भी
कारण क्रोध अति |
         ७६
हुई प्रगट
विकृत मुखी काली
पास हाथ में
विचित्र खड्ग अस्त्र
और तलवार भी |
          ७७
विभूषित थी
नरमुंड माला से
चर्म की साडी
परिधान उनकी
विकराल मुखी थी |
           ७८
विशाल मुख
हड्डियों का ढांचा था
सुखा शरीर
भयंकर दर्शन
लपलपाते जिव्हा |
           ७९- ८०
आँखे गहरी
भीतर को धंसी थी
कुछ लाल थी
अपनी गर्जना  से
सम्पूर्ण दिशाओं को .....
गूंजा रही थी
शत्रु दैत्यों का बध
कर रही थी |
वे कालिका देवी थी
दैत्यों पर भारी थी |
           ८१
घोड़े ओ हाथी
रथ समेत रथी
मुँह में डाल
भयानक रूप से
सब चबा डालती |
         ८२
कालिका देवी
सारी दैत्य सेना को
मार गिराया
दांतों से पीस डाली
अस्त्रों से काट डाली |
           ८३
देखा चंड ने
अत्यंत भयानक
काली देवी को
दौड़ा उनकी ओर
पकड़ने  देवी को |
           ८४
बाणों की वर्षा
महादैत्य मुंड ने
देवी पर की 
चक्रों से भी देवी को
वे आच्छादित किया |

नवरात्रि और दुर्गापूजा का हार्दिक शुभकामनाएं !
क्रमशः.......

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित

        




Thursday 25 September 2014

शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ३

भाग २ से आगे

माँ चंद्रघंटा

आप सबको शारदीय नवरात्रि ,दुर्गापूजा एवं दशहरा का अग्रिम शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत कर रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं ! दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्रि में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !


      45
शुम्भ अथवा
पराक्रमी निशुम्भ
स्वयं पधारे
जीतकर मुझको
मुझसे व्याह करे |
        ४६
दूत ने कहा
देवी तुम दम्भ में
बात न करो
कौन ऐसा पुरुष
जीते शुम्भ निशुम्भ ?
       ४६
छोडो घमंड
भीडो न शुम्भ संग
हारोगी जंग
तुम अकेली नारी
कैसे तुम लड़ोगी ?
      ४७
देव दानव
युद्ध में सब हारे
विजयी शुम्भ
तुम नारी होकर
कैसे करोगी युद्ध ?
       ४८
कहता हूँ मैं
शुम्भ की आज्ञा मान
रक्ष अपना
मान और सम्मान
मान शुम्भ को पति |
       ४९
हारने पर
जाओगी चलकर
खोकर मान
पकड़ेंगे केश वे
घसीटेंगे रास्ते में |
        50
कहा देवी ने
शुम्भ पराक्रमी है
कहो उनसे
नहीं तोड़ सकती
डरकर प्रतिज्ञा |
        ५१
शुम्भ निशुम्भ
विजयी दैत्य द्वय
करे निर्णय
करे वही जो सही
उचित जान पड़े |

धूम्रलोचन बध !

         ५२
निराश दूत
सुन देवी कथन
क्रोध में आया
दैत्यराज को सब
विस्तार से बताया |
        ५३
कुपित हुआ
वचन सुनकर
शुम्भ असुरा
दैत्य सेनापति को
तुरंत बुलवाया
       ५४
धूम्रलोचन
सेनापति हाज़िर
शुम्भ ने कहा
अपनी सेना साथ
युद्ध में जाओ तुम |
         ५५
दुष्टा के केश
पकड़कर तुम
 लेकर आओ
बलपूर्वक उसे
घसीटकर लाओ |
         ५६
शुम्भ की आज्ञा
धूम्रलोचन दैत्य
पाकर चले
साठ हज़ार सेना
साथ लेकर चले |
       ५७
देवी थीं जहाँ
पहुंचकर वहाँ
कहा देवी को...
नारी ! तू अहंकारी !
ललकारा देवी को |
          ५८
स्वेच्छा से तुम
प्रसन्नता पूर्वक
मेरे मालिक
शुम्भ निशुम्भ पास
चलो स्वामी समीप |
          ५९
इन्कार पर
झोंटा पकड़कर
मैं ले जाऊँगा
बुद्धिमती नारी हो
वक्त समझती हो |
     60    
देवी ने कहा
दैत्य के सम्राट ने
तुम्हे भेजा है
स्वयं हो बलवान
सोचो कुछ निदान |
       ६१
तुम्हारे साथ
सेना भी है विशाल
मेरा क्या बस ?
क्या कर सकती हूँ ?
घसीटो बल पूर्वक |
        62
धूम्रलोचन
सुन देवी वचन
क्रोधित हुआ
दौड़ा उनकी ओर
देवी हुंकार किया ....
       ६३
देवी को देख
धूम्रलोचन दैत्य
हुंकार भरा
क्रोधित देवी दृष्टि
दैत्य को भष्म किया |

नवरात्रि और दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनाएं
क्रमश:

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित






Wednesday 24 September 2014

शम्भू -निशम्भु बध भाग २

भाग १ से आगे 

 
माँ ब्रह्मचारिणी



    २४    
इसके बाद
भृत्त शम्भू निशम्भु
चंड-मुंड ने
देखा मन मोहिनी
देवी अम्बिका रूप|
         25
सुचना दिया
शुम्भ ओ निशुम्भ को
रूपसी देवी
स्थित है पर्वत में
महारानी के योग्य |
        २६
मोहिनी रूप
किसीने नहीं देखा
असुरेश्वर
स्त्रियों में वह श्रेष्ट
है वह कुलश्रेष्ट |
        २७
अंग सुन्दर
बहुत ही सुन्दर
अंग प्रत्यंग
श्री अंगों के प्रभा से
प्रकाशित दिशाएँ |
        २८
असुरेश्वर !
कौन देवी है वह ?
जान लीजिये
हिमालय पर ही
बैठी है वह अभी |
        २९
हे दैत्यराज !
लोकों में हाथी  घोड़े
है जो आपके
मणि रत्न जितने
शोभा पाते घर में ....
       30
सब तुच्छ हैं ,
रमणी के रूप में
वह हीरा है
आपकी महारानी
बनने सुयोग्य हैं |
       31
स्त्रियों में रत्न
कल्याणमयी देवी
अपूर्व आभा
होगी दैत्यों की रानी
करते  हैं  विनती |
         ३२
चंड -मुंड का
सुनकर वचन
 शुम्भ ने दूत 
असुर सुग्रीव को
भेजा देवी के पास |
        ३३
शुम्भ ने कहा
तुम मेरी आज्ञा का
करो पालन
समझाना देवी को
शीघ्र करो गमन |
       ३४
दूत पहुँचा
जहाँ देवी मौजूद
विनम्रता से
वाणी में कोमलता
मधुर वचन से ...
       ३५
प्रार्थना किया ...
"तोनो लोकों के राजा
शुम्भ दैत्य का
सन्देश सुनो देवी
मैं हूँ दूत सुग्रीव |
      ३६
उनकी आज्ञा
मानते है देवता
त्रिलोकेश्वर
यज्ञों भागो को वह
भोगता है अकेला |
         ३७
 लोकों में श्रेष्ट
स्वर्ग मर्त्य पातळ
अजेय राजा
देवराज इन्द्र का
राजत्व छीन लिया|
       ३८
देव गंघर्व
सबके रत्न  आदि
शुम्भ निशुम्भ
जित लिया सबको
हराकर युद्ध में |
        ३९
महा संग्राम
किया दैत्य द्वय ने
देवताओं से
स्वर्ग को भी जीता है
हराकर देवों को |
       ४०
मृग नयनी !
सारी स्त्रियों में मणि
हे कोमोलांगी!
मेरी ये बातें सुनो
भजो शुम्भ निसुम्भ !"
       ४१
दूत मुख से
परक्रामी शुम्भ के
सुन सन्देश ,
मुस्कुराकर देवी
मीठी वचन बोली |
       ४२
दूत सुग्रीव
सत्य कहा तुम ने
मिथ्या नहीं है |
शुम्भ लोकों का स्वामी
निशुम्भ पराक्रमी |
       ४३
बुद्धि हीन मैं
प्रतिज्ञा बद्ध हूँ मैं
तोडूँगी कैसे ?
जो वीर संग्राम में
हरा देगा मुझको .....
         ४४
निश्चित जानो
मेरा स्वामी होगा वो
अल्प वुद्धि मैं
नहीं तोड़ सकती
यह प्रतिज्ञा मेरी |


क्रमश:

कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित














Tuesday 23 September 2014

शम्भू -निशम्भु बध --भाग १

प्रिय मित्रों !
आप सबको शारदीय नवरात्री ,दुर्गापूजा एवं दशहरा का अग्रिम शुभकामनाएं ! गत वर्ष इसी समय मैंने महिषासुर बध की  कहानी को जापानी विधा हाइकु में पेश किया था जिसे आपने पसंद किया और सराहा | उससे प्रोत्साहित होकर मैंने इस वर्ष "शुम्भ -निशुम्भ बध" की कहानी को जापानी विधा "तांका " में प्रस्तुत करने जा रहा हूँ | इसमें २०१ तांका पद हैं ! दशहरा तक प्रतिदिन 20/२१ तांका प्रस्तुत करूँगा |आशा है आपको पसंद आयगा |नवरात्री में माँ का आख्यान का पाठ भी हो जायगा !


                                                                            
                                                                                



                                                        वन्दना !
    १.
शारदा देवी
विद्या बुद्धि दायिनी
त्वं सरस्वती
पुन: पुन: नमामि
अर्पित पुष्पांजलि |
          २.
चन्द्र रूपिणी
सुख शांति दायिनी
शुभ्र वरन
जगत जननी को
सतत नमस्कार |
         ३.
राज लक्ष्मी को
शर्वाणी स्वरुपा  को
अत्यंत सौम्य
अत्यंत रौद्ररूपा
देवी को प्रणमामि|
        ४.
सरस्वती ही 
महा लक्ष्मी रूपिणी
दुर्गा रूपा को
रक्तबीज हारिणी
नमामि महाकाली |
          ५.
चन्द्र किरण
सम ज्योति,कान्ति है ,
शुम्भ -निशुम्भ
घातिनी दुर्गामा को
सतत नमन है |
          ६.
दुःख नाशिनी
शुम्भ आदि दैत्यों का
कर संहार
देवराज इन्द्र का
किया स्वर्ग उद्धार |
        7.
नमामि त्वम्
बहु रूप धारिणी
कष्ट हारिणी
हरना मेरी  बाधा
कहूँ तुम्हारी कथा |
************

कथा  !  

     ८.
आदि काल में
शुम्भ ओ निशुम्भ ने
इन्द्रदेव से
छिन लिया  स्वर्ग को
और यज्ञभाग को |
        ९.
सूर्य चन्द्रमा
कुबेर यम और
वरुण का  भी
अधिकार सबका
दोनों दत्यों ने छिना |
         10.
वायु अग्नि को
सब देवताओं  को
पराजित हो
अधिकार हीन हो
स्वर्ग से जाना पड़ा |
         ११.
जगदम्बा ने
दिया था वरदान
देवताओं को
आपद विपद में
करेंगी रक्षा उन्हें |
        १२.
दोनों दैत्यों से
तिरस्कृत देवता
दुर्गा देवी के
शरण में पहुंचे
दुःख के नाश हेतु |
       १३.
पहुंच कर
गिरि हिमालय में
कर बद्ध हो
जगदम्बा माता की
स्तुति करने लगे |
       14.
हे दुर्गापारा
सारा सर्व कारिणी
सुख स्वरुपा
जगत का  आधार
कोटिश: नमस्कार |
       १५.
विष्णुमाया के
नाम से प्रचलित
सब प्राणी में
प्रतिष्ठित जग में
तुमको नमस्कार |
        १६.
हम सब की
वुद्धि ,शक्ति ,कान्ति हो
लज्जा रक्षक
राजलक्ष्मी श्रद्धा हो
क्षमाशील माता हो |
         १७.
करुणामयी
रक्ष हे दयामयी
देवताओं को
शुम्भ निशुम्भ दैत्य
पराजित देवों को |
        18.
कल्याण मयी
जग मंगल कारी
हे जगदम्बा
हम है स्वर्ग हीन
देवलोक स्वर्ग से |
         १९.
भगाए हुए
उद्दंड असुरों से
शरणागत
हमसब देवता
संकट दूर करो |
        20.
पार्वती देवी
गंगा स्नान के लिए
गंगा पहुंची,
सुन देवता स्तुति
भगवती ने पूछा |
         २१.
किसकी स्तुति
देवगण करते
बताओ मुझे ,
उन्ही के शरीर से
शरीर कोष जन्मी
        २२
नाम कौशिकी
बोली भगवती से
देवता गण
पराजित होकर
शुम्भ ओ निशुम्भ से ...
       २३
मेरी ही स्तुति
गा रहे हैं देवता
एकत्रित हो ,
होकर मैं प्रसन्न
दुःख दूर करुँगी |


क्रमशः....

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित




Friday 12 September 2014

दिल की बातें ***






वे ज़ख्म देते हैं  ,मैं  मुस्कुराता हूँ 
वे खुश होते हैं ,मैं रिश्ता निभाता हूँ |
सभी रिस्ते गए थे टूट बहुत पहले 
रिवाजों का ही" ढोए बोझ जाता हूँ |
मुसीबत में लोग गधे को बाप कहते है 
इसी उम्मीद से गधे की जिंदगी जी रहा हूँ |
किस्मत कहते हैं किसको ,मुझे नहीं पता
मैं तो अपना कर्म का फल भोग रहा हूँ |
शब्द के अथाह सागर में गोता लगाता हूँ
मन पाखी को भाता है शब्द वही कहता हूँ | 
पूजता हूँ ईश्वर ,अल्लाह ,पाने उनके 'प्रसाद '
आजतक किसने पाया ,उसको ही ढूंढ़ रहा हूँ | 


(c) कालीपद "प्रसाद "