Friday 19 June 2015

तुम्हारी याद !






क्या कहूँ कुछ सूझता नहीं ,काल-कर्कट है बड़ा क्रूर
तुड़वा दिया कसम हमारी ,कर दिया तुमको मुझ से दूर|
खाए थे कसम हमने मिलकर ,साथ रहेंगे जिंदगी भर
तुम हो कहीं पर ,मैं हूँ कहीं ,हो गए हम लाचार मजबूर |
हवा करती शोरगुल जब ,पत्तों का होता है सर- सराहट
लगता है यहीं कहीं पास में हो तुम,नहीं हो हमसे दूर |
रजनी-गंधा रजनी भर जगकर, बिखेरती जब अपनी महक
मन-कोयल मेरा चाहता है गाना,पर गायब है उसका सुर |
बादल के काले घुंघराले बाल ,ज्यों उड़ते फिरते आस्मां में |
लगता है तुम उड़ रही हो ,उड़ रहे हैं तुम्हारे काले चिकुर |
लड़ना झगड़ना ,चुप रहना, फिर बोलना याद आ रही है
अंतिम क्षण तक तेरी याद,दिल को मेरे बेक़रार करेगी जरुर |


 कालीपद "प्रसाद"

© सर्वाधिकार सुरक्षित

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...

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  2. बहुत ही सुन्दर कोमल भावपूर्ण रचना...

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  3. आपका आभार तुषार रस्तोगी जी !

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  4. हार्दिक आभार डॉ रूप चन्द्र शास्त्री जी !

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. प्रेम औए विरह के रंग में लिखी भावपूर्ण याचना ...

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  7. bahut sunder yadon ke bandhan me bandhi rachana ..

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