Sunday 25 December 2016

ग़ज़ल

प्यार की धुन बजाता जायगा
राज़ जीवन का सुनाता जायगा |

पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ  
दोस्ती सबसे निभाता जायगा |

बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा
दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |

पेट खुद का चाहे हो खाली मगर
खाना भूखों को खिलाता जायगा |

ले धनी का साथ अपनी राह में
मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |

छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा
प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा |

उस फरिस्ते की प्रतीक्षा है अभी
स्वर्ग धरती को बनाता जायगा |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Thursday 22 December 2016

ग़ज़ल /गीतिका

न किसी को कभी रुलाना है
हर दम हर को तो हँसाना है|१

कर्मों के फुलवारी से ही
यह जीवन बाग़ सजाना है |२

दुःख दर्द सबको विस्मृत कर
जश्न ख़ुशी का ही मनाना है |३

मौसम का मिजाज़ जैसा हो
प्रेम गीत तो गुनगुनाना है |४

रकीब की मरजी पता नहीं
अपना घर नया बसाना है |५

चश्मा द्वेष का उतार देखो
दुनियाँ प्यार का खज़ाना है |६

गरीब और धनी बीच फर्क
भेद भाव सभी मिटाना है |७

मज़हब अलग अलग पर इक रब
सबको ये राज बताना है |८


© कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday 20 December 2016

ग़ज़ल

बन्दे का काम घेर, उसूलों ने ले लिया
है गलतियाँ रहस्य, बहानों ले लिया |१
वो बात जो थी कैद तेरे दिल की जेल में
आज़ाद करना काम अदाओं ने ले लिया |२
चुपके से निकले घर से, सनम ने बताया था
वो जिंदगी का राज़ निशानों ने ले लिया |३
धरती को चाँदनी ने बनायीं मनोरमा
विश्वास नेकनाम सितारों ने ले लिया |४
मिलता है सुब्ह शाम समय रिक्त अब नहीं
पूरा दिवस व रात्रि किताबों ने ले लिया |५
बादल बरसते पौष, हुए फायदा बहुत
आनंद सब उधार फिजाओं ने ले लिया |६
सामान थे अनेक प्रसाधन के थे सकल
चारो तरफ से घेर हसीनों ने ले लिया |७
आकाश है पलंग बिछाना कपास है
नीरद उड़ान तेज हवाओं ने ले लिया |८
वादा बहुत किया है कुशल क्षेम आयगा
सबका है साथ हाथ बयानों ने ले लिया |
© कालीपद ‘प्रसाद’

Monday 12 December 2016

दोहे

नोट बंद जब से हए, लम्बी लगी कतार
बैंकों में मुद्रा नहीं, जनता है लाचार |
लम्बी लम्बी पंक्ति है, खड़े छोड़ घर बार
ऊषा से संध्या हुई, वक्त गया बेकार |
बड़े बड़े हैं नोट सब, गायब छोटे नोट
चिंतित है सब नेतृ गण, खोना होगा वोट |
नोटों पर जो लेटकर, लुत्फ़ भोगा अपार
नागवार सबको लगा, शासन का औजार |
तीर एक पर लक्ष्य दो, शासन किया शिकार
आतंक और नेतृ गण, सबके धन बेकार |
व्याकुल है नेता सकल, कैसे होगा पार
बिकते वोट चुनाव में, होता यह हर बार
सचाई और शुद्धता, प्रजातंत्र आधार
मिलकर सभी बना लिया, शासन को व्यापार |
जनता खड़े कतार में, चुपचाप इंतज़ार
संसद में नेता सकल, विपक्ष की हुंकार |
© कालीपद ‘प्रसाद’

Thursday 8 December 2016

ग़ज़ल

कुछ को लगा कि नाव डूबता नज़र आ रहा है
तो कोई अपनी सत्यता का गीत गाता रहा है |

तो कोई माँगता है हक़ तमाम संपत्ति स्वामित्व
फिर इंदिरा को याद कर प्रशस्ति गाता रहा है |

दिन भर खड़े खड़े हताश लोग सब हैं परेशां 
कुछ नोट वास्ते तमाम दिन ही प्यासा रहा है |

आशा कभी रही नहीं कि अच्छे दिन गप्प होगा
चेहरा सभी कुसुम कली निराश मुरझा रहा है |

वादा बहुत हुआ प्रसाद कुछ मिला भी नहीं अब
मुँह अब झुका झुका इधर उधर छिपाता रहा है |


© कालीपद ‘प्रसाद’

Wednesday 7 December 2016

ग़ज़ल

दिया है वचन तो निभाना पड़ेगा
प्यार की कशिश में आना पडेगा |
तुम्ही ने लिए है कसम और वादे
तुम्हे अब कहो क्या मनाना पडेगा ?

जो भी हूँ जहाँ हूँ, हमें ना भुलाओ
जो वादा किया वो निभाना पडेगा |

ज़माना कभी भी बुरा तो नहीं है
बुरा आदमी है, सुधरना पडेगा |

गुलों में जो खुशबु है, उसको भी जानो
क्रिया का ही खुशबू, बढ़ाना पडेगा |



कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday 6 December 2016

एक ग़ज़ल



कमजोर जो हैं तुम उन्हें बिलकुल सताया ना करो
खेलो हँसो तुम तो किसी को भी रुलाया ना करो |
दो चार दिन यह जिंदगी है मौज मस्ती से रहो
वधु भी किसी की बेटी है उसको जलाया ना करो |
चाहत की ज्वाला प्रेम है इस ज्योत को जलने ही दो
लौ उठना दीपक का सगुन उसको बुझाया ना करो |
अच्छी लगी हर बात जब बोली मधुर वाणी सदा
कड़वी नहीं अच्छी कभी, कड़वी बताया ना करो |
हम मान लेते हैं सभी बातें तुम्हारी किन्तु तुम
आगे अभी ज्यादा कभी मुझको नचाया ना करो |
© कालीपद ‘प्रसाद

Friday 2 December 2016

एक शेर :

नोटबंदी कर दिया है  वह बिना सोचे विचारे
ध्यान से देखो किधर अब देश को ले जाता बन्दा
कालीपद 'प्रसाद' 

Tuesday 15 November 2016

प्रदूषण


प्रदूषण

ब्रह्म राक्षस अब
नहीं निकलता है घड़े से
डर गया है मानव निर्मित
ब्रह्म राक्षस से |
वह जान गया है
मानव ने पैदा किया है
एक और ब्रह्म राक्षस
जो है समग्र ग्राही
धरा के विनाश के आग्रही |
यह राक्षस नहीं खर दूषण
यह है प्रदूषण |
काला गहरा धुआं
निकलता है दिन रात
कारखाने की चमनी से,
मोटर गाड़ियों से,
फ़ैल जाता है आसमान में|
धुंध बन शहर गाँव को
ले लेता है अपने आगोश में |
दिखता नहीं कुछ आखों से
लोग मलते हैं आखें,
गिरते आँसू लगातार
रोते सब गाँव शहर |
डरावना नहीं रूप इसका
डरावना है काम इसका |
घुस कर चुपके से
जीव शरीर के अन्दर
दिल, फेफड़े को करता है पंचर | 
मानव की मूर्खता देखो ...
उसे जो बचा सकता है
उस जीवन दाता जंगल को
काट काट कर खात्मा किया है |
दिखाने झूठी शान
मूर्खता से काटता वही डाल
जिस पर खुद बैठा है इंसान |
दीवाली में अर्थ करता बर्बाद
पटाखे जलाते हैं बे-हिसाब
दूषित करते पर्यावरण को
जल्दी आने का निमंत्रण
भेजते हैं यमराज को |
अफसर मंत्री सब मौन क्यों हैं ?
पटाखें पर बैन क्यों नहीं हैं ?
जल जीवन है,
और
वायु प्राण है,
दोनों प्रदूषित हैं |
रे इंसान ! सोच ...
जल वायु बिन तू कैसे जियेगा ?
न तू रहेगा, न कोई इंसान
धरती हो जायगी बेजान |
यह सत्य है ...
अब भी गर तू रहता
स्वार्थ की नींद में    
तो धरती से प्राणी का
विलुप्त होना निश्चित है |

कालीपद 'प्रसाद' 

Saturday 12 November 2016

प्रदूषण

सागर पर्वत दरिया पादप, सुंदर हर झरना नाला
थे सुन्दर वन जंगल जैसे, हरा पीला फूल माला |
शुद्ध हवा निर्मल जल धरती, सब प्रसाद हमने पाया
काला धुआँ दूषित वायु सब, हैं स्वार्थी मनुष्य जाया ||

पागलों ने काट पौधे सब, वातावरण को उजाड़ा
बे मौसम अब वर्षा होती, बे मौसम गर्मी जाडा |
ववंडर कहीं तूफ़ान कहीं, है प्रदुषण का नतीजा
कहीं सुखा तो कही जल प्रलय, होगी विध्वंस उर्वीजा* ||

समझे नहीं इंसान अब तक, अब तो समझना पडेगा
वरना बहुत देर न हो जाय, तब जीवन खोना पडेगा |
हवा पानी सब प्रदूषित है, सुरक्षित नहीं है दिल्ली
इन्द्रप्रस्थ बन गया अब तो, सब मूढ़ का शेखचिल्ली ||

*उर्वीजा –जो पृथ्वी से उपजा हो

कालीपद ‘प्रसाद’

Sunday 6 November 2016

होली का त्यौहार -जीजा साली का छेड़ छाड़



फागुन में होली का त्यौहार
लेकर आया रंगों  का बहार
लड्डू ,बर्फी,हलुआ-पुड़ी का भरमार
तैयार भंग की ठंडाई घर घर।

पीकर भंग की ठंडाई
रंग खेलने चले दो भाई
साथ में है भाभी  और घरवाली
और है साली ,आधी घरवाली।

भैया भाभी को प्रणाम कर
पहले भैया को रंगा फिर भाभी संग
पिचकारी मारना ,  गुलाल मलना
शुरू   हुआ   खूब  हुडदंग।

घरवाली तो पीछे रही
पर आधी घरवाली बोली
"जीजा प्यारे ",साली मैं दूर से आई  
छोडो आज घरवाली और भौजाई।
इस साल की रंगीन होली तो
केवल हम दोनों के लिए आई।
आज तुमपर मै रंग लगाउंगी
मौका है आज ,दो दो हाथ करुँगी
न रोकना ,न टोकना, मैं नहीं मानूँगी
आज तो केवल मैं अपना  दिल की सुनूँगी।
तुम  तो मेरा साथ देते रहना
कदम से कदम मिलाते रहना ,
मैं नाचूँगी , तुम नाचना .
हम नाचेंगे देखेगा ज़माना।"

रंग की बाल्टी साली पर कर खाली
जीजा बोले "सब करूँगा जो तूम  कहोगी
पर  तुम तो अभी कच्ची कली  हो
शबाबे हुश्न को जरा खिलने दो
खिलकर फुल पहले  महकने  दो 
महक तुम्हारे नव  यौवन का
मेरे तन मन में समा जाने दो
तब तक तुम थोडा इन्तेजार करो।
वादा है ,अगली  होली  जमकर
केवल तुम से ही खेलूँगा।
यौवन का मय जितना पिलाओगी
जी भरकर सब पी  जाऊँगा .
नाबालिग़, अधखिली कली हो
 धैर्य धरो ,जिद छोड़ दो
खिले फूलों पर आज
मुझको जी भर के मंडराने दो।"

साली बोली "तुम बड़े कूप मंडुप हो
भारत सरकार के नियम कानून से अनभिज्ञ हो
दो साल का छुट मिला है सहमति रसपान का
हिम्मत करो आगे बढ़ो , अब डर  किस बात का ?
भौंरें तो कलियों पर मंडराते हैं ,मुरझाये फूलों पर नहीं
मधुरस तो कलियों में है ,मुरझाये फुलों में नहीं। "


कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित









Thursday 3 November 2016

सनम नहीं कहीं भी तो सराब पहने हुए

ग़ज़ल

अवाम में सभी जन हैं इताब पहने हुए
सहिष्णुता सभी की इजतिराब पहने हुए |
गरीब था अभी तक वह, बुरा भला क्या कहे
घमंडी हो गया ताकत के ख्याब पहने हुए |
मसलना नव कली को जिनकी थी नियत, देखो
वे नेता निकले हैं माला गुलाब पहने हुए |
अवैध नीति को वैधिक बनाना है धंधा
वे करते केसरिया कीनखाब पहने हुए |
शबे विसाल की दुल्हन को इंतज़ार रहा
शबे फिराक हुई इजतिराब पहने हुए |
शबे दराज़ तो बीती बिना पलक मिला कर
सनम नहीं कहीं भी तो सराब पहने हुए |
शब्दार्थ :
इताब –गुस्सा ; इजतिराब –बेचैनीकीनखाब – रेशमी वस्त्र ,कपड़ा ; सराब – मृग मरीचिका ,भ्रम
शबे विसाल – मिलन की रात: शबे फिराक – विरह की रात,शबे दराज़ –लम्बी रात
© कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday 1 November 2016

मिटटी के दिये






मिटटी से मेरा जनम हुआ, मिटटी में मिल जाता हूँ
छोटी सी है जिंदगी मगर, जगत को जगमगाता हूँ |

दीवाली हो या होली हो, प्रात:काल या सबेरा
जब भी जलाया मुझे तुमने, किया दूर सब अन्धेरा |
जलना ही मेरी नियति बनी, जलकर प्रकाश देता हूँ
मिटटी से मेरा जनम हुआ, मिटटी में मिल जाता हूँ
छोटी सी है जिंदगी मगर, जगत को जगमगाता हूँ |

धनी गरीब या राजा रंक, सबका ही मै हूँ प्यारा
मेरी रौशनी तामस हरती, मानते हैं जगत सारा
भेद भाव नहीं करता कभी, सबके घर मैं जाता हूँ
मिटटी से मेरा जनम हुआ, मिटटी में मिल जाता हूँ
छोटी सी है जिंदगी मगर, जगत को जगमगाता हूँ |

मिले तुम्हे प्यार सम्मान सब, ख़ुशी ख़ुशी मुझे जलाना
भूलकर डाह दुःख दर्द तुम, जीवन में खुशियाँ लाना
जलती बाती ज्ञान-प्रीत की, लेकर यश मैं जाता हूँ
मिटटी से मेरा जनम हुआ, मिटटी में मिल जाता हूँ
छोटी सी है जिंदगी मगर, जगत को जगमगाता हूँ |


© कालीपद ‘प्रसाद




                                                                               

Saturday 22 October 2016

सरहद

हम हैं जवान रक्षक देश के,  अडिग जानो हमारा अहद,
प्रबल चेतावनी समझो इसे, भूलकर पार करना न सरहद |

अत्याचार किया अबतक तुमने, हमने भी सहन किया बेहद,
सर्जिकल का नमूना तो देखा, अब तो पहचानो अपनी हद |

मानकर तुम्हे पडोसी हमने, दिया तुम्हे समुचित मान ,
उदारता को तुम कमजोरी समझे, हमारी शक्ति का नहीं ज्ञान |

याद करो इकहत्तर की लड़ाई, बांग्ला देश हुआ था तब आज़ाद,
अब लड़ोगे तो जायगा बलूच हाथ से, तुम हो जाओगे बर्बाद |

लड़ाई की धमकी देतो हो किन्तु, अंजाम का कुछ नहीं है ज्ञान,
नक़्शे पर कहीं नहीं होगा तब, पाकिस्तान का नामो निशान |

सोचो, बदल जाय माली अगर, कब्जे वाले पश्चिम काश्मीर का
क्या होगा अंजाम तब , पाक पोषित घृणित आतंक का ?

भोले भाले नौजवान आते, सजोये अपने सपनों की पालकी
पिलाकर जेहाद का भ्रमित विष, उन सबको बना देते हो आतंकी |

सरहद पार भारत में आकर वे जब करते हैं आतंकी उत्पात  
अकाल मृत्यु सब करते हैं प्राप्त, होता परिवार पर उल्कापात |

सुनो, संभल जाओ, अभी समय है, बन जाओ अब थोड़ा अकल्मन्द
खड़े वीर जवान सरहद पर हमारे, अभेद्य, सुरक्षित है हमारी सरहद |


© कालीपद ‘प्रसाद’ 

Wednesday 19 October 2016

करवा चौथ

करवा चौथ

समाज में कुछ है आस्था
उससे ज्यादा प्रचलित है व्यवस्था,
प्रगतिशील वैज्ञानिक युग में
ज्ञान का विस्फोट हो चुका है
उसकी रौशनी में
छटपटा रही है कुछ आस्था
तोड़ना चाहती है पुरानी व्यावस्था | 
मानते हैं सब कोई ..,
कुछ रस्मे, रीति-रिवाजें
मुमूर्ष साँसे गिन रही हैं,
फिर भी उन्हें जंजीर में
जकड़ी हुई है जर्जर व्यवस्था |
करवा चौथ ...
प्रिया का प्रेम प्रदर्शन
कीमती उपहार देते हैं साजन,
शायद यही है
इस त्यौहार का जीवित रहने का कारण |
क्योकि
मानते हैं ज्ञानी, गुणी, ऋषि, मुनि
विधाता ने लिख दिया आयु
निश्चित कर दिया स्वांस की वायु
यह अज्ञेय, अपरिवर्तनीय है
जन्म और मृत्यु की निश्चित दुरी है |
पत्नी की सुनकर विनती
क्या विधाता कर देता
पति की लम्बी आयु, और  
दुबारा लिखता है उसकी परमायु ?  
मन, विवेक को यकीं नहीं,
पर मजबूर हैं, पत्नियाँ रस्मे निभाती हैं
दिन बार भूखी रहती है 
छलनी से चाँद देखकर ही खाती है 
न चाहते हुए 
खुद को, विवेक को छलती है 
यही समाज की अंधी व्यवस्था है |

@ कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday 18 October 2016

मुक्तक

स्वदेश :
जन्मभूमि को कभी भूलो नहीं, यही है स्वदेश
पढ़ लिख कर हुए बड़े, तुम्हारा परिचित परिवेश
एक एक कण रक्त मज्जा, बना इसके अन्न से
कमाओ खाओ कहीं, पर याद रहे अपना देश |

विदेश :
विदेश का सैर सपाटा सब सुहाना लगता है
नए लोग, परिधान नई, दृश्य सबको भाता है
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जिसके मन में यही भावना  
विदेश भी उस इंसान को अपना वतन लगता है |



परिष्कृत कर लो अपने पुराने शब्दकोष को
कोष से बाहर करो सब नकारात्मक शब्दों को
“असमर्थ,अयोग्य हूँ” का सोच है प्रगति के बाधक
जड़ न जमने दो मन में कभी इन विचारों को |
XXXXXX
हर इंसान में “डर” है दो धारी तलवार
यही उत्पन्न करता है नकारात्मक विचार
कभी-कभी इंसान को रोकता है भटकन से,किन्तु
इंसान के प्रगतिशील कदम को रोकता है हरबार | 

गूगल ,फेसबुक ,व्हाट्स अप  आज सबको प्रिय है
इसमें अधिक से अधिक दोस्त बनाने की होड़ है
आत्म केन्द्रित नई पीढ़ी की यही विडम्बना है दोस्त

पड़ोस के फ्लैट में कौन है ,न जानते हैं न पहचानते है |




कालीपद 'प्रसाद'


© कालीपद ‘प्रसाद’

Thursday 6 October 2016

नौ दुर्गा -प्रार्थना

गीतिका ----नौ दुर्गा –प्रार्थना
बहर: २१२२ २१२२ २१२२ २१२
रदीफ़ : चाहिए ; काफिया : “आ”
नौ दिनों की माँग भक्तों की माँ सुनना चाहिए
वे बुलाते तो माँ उनके घर में आना चाहिए |
शांति की देवी तू, संकट मोचनी दुख नाशिनी
भक्त को सुख शान्ति का वर दान देना चाहिए |
खड्ग हस्ता, ढाल मुद्गर, शूल अस्त्रों धारिणी
विध्न वाधा नाश माँ इस वक्त होना चाहिए |
अम्बे गौरी श्यामा गौरी, तुम विराजत सब जगत
शत्रु घाती दुख विनाशी, तेरी करुणा चाहिए |
धूप कुमकुम पुष्प चन्दन से किया माँ आरती
भूल चुक जो भी मेरा सब माफ़ होना चाहिए|
© कालीपद ‘प्रसाद’

Monday 3 October 2016

गीतिका

ना करो ऐसे कुछ, रस्म जैसे निभाती हो
आरसी भी तरस जाता, तब मुहँ दिखाती हो |
छोड़कर तब गयी अब हमें, क्यों रुलाती हो
याद के झरने में आब जू, तुम बहाती हो |
रात दिन जब लगी आँख, बन ख़्वाब आती हो
अलविदा कह दिया फिर, अभी क्यों सताती होजिंदगी जीये हैं इस जहाँ मौज मस्ती से
गलतियाँ भी किये याद क्यों अब दिलाती हो |
प्रज्ञ हो जानती हो कहाँ दुःखती रग है
शोक आकुल हुआ जब, मुझे तुम हँसाती हो |
कहती थी मुँह कभी फेर लूँ तो तभी कहना
दु:खी हूँ या खफ़ा, तुम नहीं अब मनाती हो |
वक्सिसे जो मिली प्रेम के तेरे चौखट पर
भूलना चाहता हूँ, लगे दिल जलाती हो
कालीपद ‘प्रसाद

Wednesday 21 September 2016

पाकिस्तान मिट जायगा

उरी में शहीद हुए,शहीदों को समर्पित
पकिस्तान मिट जायगा !

कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान|
सोना, मरना एक जैसा, निर्जीव शव है जैसा
सोता अनजान होता है, आस पास कौन कैसा|
कायर हो तुम अधम, सोते में उनकी जान ली
निर्जीव शव को मार कर, बहादुरी क्या कर ली?
परिणाम नहीं जानते तुम, नतीजे से हो अनजान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान|
गर हिम्मत हो तुम में तो. मैदाने जंग में आओ
बीरता से मैदाने जंग में अपनी बहादुरी दिखाओ|
छुप छुप कर कपटी तुम, अब भी खेलते खेल
जगे सिंह की मार तुम, कभी नहीं पाते झेल |
बचकानी हरकतें छोडो, दीखाओ तुम हो जवान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान|
हमें मत डराओ देकर धमकी, उस एटम बम्ब की
तुम भूल गए क्या शर्मनाक अंजाम इकहत्तर की ?
इतराओ न, पड़े रहेंगे ख्वाब के सारे पटाखे तुम्हारे
न कोई बाहन होगा न हाथ, ये चलेंगे किसके सहारे?
हमारे ब्रह्मोस से न बचेगा, न रहेगी किसी की जान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान |
आतंक पल रहा है पाकिस्तान के हर गाँव शहर में
कराची लाहोर के कोने कोने, स्वतंत्र खंड काश्मीर में
खोदा गड्ढा भारत के वास्ते, बनेगा वही पाक का मजार
आहिस्ता आहिस्ता अब होंगे, पाकिस्तान के टुकड़े हज़ार
उन सबसे बेखबर हो, पाकिस्तान के तुम हुकुम रान
कश्मीर होगा अब से देखो, भारत देश की शान
पाकिस्तान का मिट जायगा, सभी नामो निशान|
©कालीपद ‘प्रसाद’

Tuesday 20 September 2016

क्षमा (कविता)

बुद्ध, जैन, सिख, ईशाई, हिन्दू , मुसलमान
सबका मत एक ही है, क्षमा ही महा दान |

हर धर्म मानता है क्षमा, शांति का है मूल
जानकर भी फैलाते नफरत, क्यों करते यह भूल?

त्यागना होगा खुद का स्वार्थ, करके अंगीकार
त्यागना होगा भेद भाव, धन जन का अहंकार |

धर्म के नाम से धंधा कर, बोते हैं विष वेल 
क्षमा-अमृत, ईर्ष्या-विष में नहीं है कोई मेल |

होते सच्चे धर्मात्मा, मन से सुन्दर क्षमाशील
सुदृढ़ विश्वास, प्रवुद्ध, उदार, असीम सहनशील |

उत्तम गुणी परोपकारी जो, होते जगत में क्षमावान
क्षमा मांग कर सबसे, करते सबको क्षमा दान |

होगा जब हर व्यक्ति क्षमावान, शांति होगी देश में
हिंसा, द्वेष, ईर्ष्या का स्थान, नहीं रहेगा ह्रदय में |

सामर्थ्यवान और बुद्धिमान का क्षमा है उत्तम गुण
कायर, कमजोर और बुद्धिहीन होते है सदा निर्गुण |


© कालीपद ‘प्रसाद’