Sunday 14 February 2016

मेरा मन उदास है !*

मेरा मन उदास है

हर साख पर फुल खिले हैं, वसन्त का पदार्पण है
भौंरें गुण गुना रहे हैं, पर मेरा मन उदास है |
फल-फूलों के खुशबु से, हवाएं सुवासित है
चिड़ियाँ चहक रही है, पर मेरा मन उदास है |
पीले-पीले सरसों फूल से, खेत सब भरे पड़े है
तितलियाँ मंडरा रही हैं, पर मेरा मन उदास है |
वासंती हवा गा रही है, कोयल के संग संग
पुष्प-लता सब झूम रही है, पर मेर मन उदास है|
लाल लाल टेसू के फूल, अनंग जगा रहा है
जीवन साथी के वियोग में, मेरा मन उदास है |
धरती ने किया अनुपम श्रृंगार, फुल-पत्ते हैं अलंकार
मोह रही है धरा वासी को, पर मेरा मन उदास है |
पिया ने सजाया था इस बाग़ को, बाग़ उजाड़ गया
श्रीहीन,सौरभ हीन इस बाग़ में, मेरे मन उदास है |
अली-गुन्जन,कोयल-कुजन, मधुमास का आभास है
पिया विहीन इस बाग़ में, मेरा मन उदास है |

कालिपद ‘प्रसाद’
© सर्वाधिकार सुरक्षित 

Saturday 13 February 2016

जय माँ शारदे !

                                                                               
माँ शारदे !





जय माँ शारदे, जय माँ शारदे
मेरी जिंदगी में तू
नया साज़, संगीत भर दे ....,

तू ही मेधा, तू ही स्मृति
इड़ा पिंगला, तू ही धृति
स्मृत्ति के काले बादलों को हटा दे
मेरी जिंदगी में तू  
नया साज़, संगीत भर दे ....,

तिमिर हारिणी, ज्ञान दायिनी माता
तू है स्वर, संगीत के जन्म दाता
तिमिर हर, ज्योति जला दे
मेरी जिंदगी में तू
नया साज़, संगीत भर दे ....,

वसंत पञ्चमी, आज तेरी पूजा
विषाद मन से, कैसे करूँ पूजा
विषाद हर, हर्ष भर दे
मेरी जिंदगी में तू   
नया साज़, संगीत भर दे ...,

विवेक, वुद्धि, विचार दायिनी
तू है शब्द–शक्ति प्रदायिनी
मेरी सोच में संयम भर दे
मेरी जिंदगी में तू
नया साज़, संगीत भर दे ....,

जय माँ शारदे, जय माँ शारदे
मेरी जिंदगी में तू  
नया साज़, संगीत भर दे ....,

कालीपद 'प्रसाद'
सर्वाधिकार सुरक्षित 

Monday 8 February 2016

जीवन संग्राम !



जीवन एक सतत युद्ध है
हर दिन हर पल लड़ना पड़ता है
कभी किसी व्यक्ति से,
कभी किसी विचार से ,
कभी ‘काल’ से
कभी परिस्थिति से,
कभी खुद के दिल और विवेक से,
इसमें जय पराजय गौण है
सतत युद्ध करना ,योद्धा का धर्म है
यही जीवन का सारांश है |

जीवन एक अनजान आश्चर्य है
इसमें अथाह सिन्धु की गहराई है
हिमाच्छिद पर्वत शिखर है
जलहीन मरू, सुखा सिकता है
फूलों की खुशबु और काँटों की चुभन है,
किस मोडपर किस से होगी मुलाकात
कोई नहीं जानता यह बात
सब कुछ अनजान है |
जिंदगी अचानक लेती मोड़
विस्मित करती है विवेक को
और मोह लेती है दिल को
यही तो जीवन का आकर्षण है |


कालीपद "प्रसाद"

Friday 5 February 2016

तुम्हारी यादें

टूट गया इस जनम का
तुम्हारा और मेरा रिश्ता ,
बेरहम मृत्यु ने तोड़ दिया
हमारा भौतिक जग-रिश्ता,
न मैं पति, न तुम मेरी पत्नी
अब तुम हो एक दैविक आत्मा
मैं मानव के रूप में हूँ एक जीवात्मा |

अलविदा कह कर तुम चली गई
पर रिश्तों का अहसास छोड़ गई ,
जिन पलों को हम ने साथ-साथ जीये,
वो आत्मीयता, वो गहराई  
जो हमने आत्मसात किये ,
जीवन के अंतिम क्षण तक
उसे कोई छीन नहीं पायगा |

अहसास होता है मुझे
गभीर निस्तब्ध निशा में
चुपके से तुम आती हो ,
पास में बैठकर नि:शब्द
अतीत के मधुर स्मृतियों की
किस्सों को सुनाती हो |
मन्त्र मुग्ध होकर मैं
एक मूक श्रोता बन जाता हूँ ,
आसपास तुम्हे ढूंढ़ता हूँ
आँखें तरसती है तुम्हारे दीदार को  

पर तुम तो अदृश्य रहती हो |

कालीपद 'प्रसाद'

Wednesday 3 February 2016

यादें

यादें !

देख पीड़ा तेरी अरसों से
दिल रोता रहा अन्दर से |

आँसू बहकर सुख गए नयन में
खून रिस रहा है दिल में  |

नहीं हूँ, जैसा राम भक्त हनुमान
कैसे दिखाऊँ तुझे, दिल है लहुलुहान |

सी लिया होंठ मैंने अपना
केवल एहसास करता हूँ तेरी वेदना |

और न यादों का नस्तर चला मुझ पर

परेशां हूँ मैं, तेरे गैरहाजिर पर |


कालीपद 'प्रसाद'