Tuesday 21 June 2016

ग़ज़ल

बह्र: २१२२ २१२२ २१२ 

सारी सारी रात-जग जिन के लिए 
पूछते वे जागरण किन के लिए |1|

चाँद तारों तो  झुले  हैं  रात में 
एक सूरज को रखा दिन के लिए ||

आसान नहीं भूलना यूँ भूत को 
आज तक तो मोह है इन के लिए ||

रात भर आँसू कभी थमती नहीं  
अश्रु जल यूँ लुडकते किन के लिए||

वो सुखी हैं या दुखी किन को पता
फूल जंगल में खिले किन के लिए ||

जानते थे हम जुदा होंगे कभी 
क्या जतन करते कभी इन के लिए ||

अब इन्हें संसार में आना नहीं                                                       
कौन रोये इस जहाँ इन के लिए ||

वो कभी पीड़ा समझना चाहती 

क्लेश हम पीते गए जिनके लिए ||

कालीपद 'प्रसाद'

Thursday 16 June 2016

दोहे !


पाप काटने के लिए, नहीं चढ़ाओ भेंट
शुद्ध सरल मन के बिना, मंज़ूर नहीं भेंट |११|
बिकता नहीं खुदा कभी, रुपये हो या माल
लोचन जल के बूंद दो, दर्शन करो कमाल |१२|
बढ़ते है पापी यहाँ, कौन करेगा नाश
हैं पौत्र रक्तबीज के, होयगा खुद विनाश |१३|
चढ़ा भेंट भगवान को, चाहते कटे पाप
घुस से कुछ होता नहीं, कटौती नहीं पाप |१४|
कर्म फल भुगतना यहीं, जानो यही विधान
क्षमा माँग सजदा करो, निष्फल होता दान |१५|

कालीपद'प्रसाद'

Sunday 12 June 2016

तीन मुक्तक

तीन मुक्तक

जाति वादी भावना लेकर, मन्दिर में जो जाते
राजनीति करते मन्दिर में, भक्ति भूल वो जाते
हर काया में ईश्वर हैं, प्रत्येक के ह्रदय में
ईर्ष्या से ही मन मन्दिर, उनके निन्दित हो जाते |1|

राजनयिक औरों के कन्धे पर से बन्दूक चलाता है
अपना विशेष गुप्त मिशन संदूकों में गोपन रखता है
जन हित में मन्दिर बनाने की, वायदा तो एक बहाना
खुद की रोजी रोटी का इन्तजाम, मन्दिर से करता है |२|

केवल पूजा पाठ को ही धर्म, मानते हैं जो लोग
अनभिज्ञ हैं अथाह आध्यात्म से, भ्रमित है वो लोग
आत्मा परमात्मा तो बसते है, अपने दिल के अन्दर
ध्यान मनन चिन्तन छोड़, बाहर ढूंढ़ते खुदा को लोग |३|

कालीपद 'प्रसाद'

Monday 6 June 2016

हम अपने आज़ादी ..


हम अपनी आज़ादी का जश्न, बोलो अब कैसे मनाएँ
अमर शहीदों के बलिदान की, गाथा किसको सुनाएँ ?

भूखे रहे, गोली खाए वे, लड़ते लड़ते सब शहीद हुए
मजबूत आंग्ल डंडा भी, हौसला वीरों का तोड़ न पाये |
गोरे अंग्रेज तो चले गए, काले अंग्रेज को कौन भगाएँ
हम अपनी...

जालियाँवाला बाग़ को देखा, देखा नोआखाली के दंगे
साजिश थी सब विदेशी राज की, जात के थे वे फिरंगे
दलित-मुस्लिम पर क्रूरता कर, चरम पंथी कैसे इतराएँ
हम अपनी ...

हर चौथा आदमी भूखा है, करोडपति संसद में बैठे है
हर चौथा सांसद पर, भ्रष्टाचार का संगीन आरोप है
निराशा में डूबे देश है , आशा की ज्योति कौन जलाएँ
हम अपनी ...

हर पार्टी है निजी कम्पनी, अध्यक्ष का है मालिकाना हक़
कभी बाप, कभी बेटा, बीबी कभी, खानदान है अधिग्राहक
कम्पनी संभाले या देश संभाले, कौन इनको बतलाएँ
हम अपनी ....

हमारा देश अव्वल है, विश्व के सब देशों की सूचि में
किन्तु खेद है, अव्वल है यह, भ्रष्ट देशों की सूचि में
खेल ना जाने खेल के अध्यक्ष, मशाल कैसे जलाएँ
हम अपनी ...
गरीब को नहीं भरपेट भोजन, सड़ता है सब खाद्यान्न
करोड़ों टन की होती बर्बादी, है यह अकुशल प्रबंधन
भूख और कुपोषण के शिकार, किसके आगे गिढ़गिढ़ायें
हम अपनी ...
© कालीपद ‘प्रसाद’