Friday 29 July 2016

बौन्साई

                                                               



                                                                     
गुगल से साभार 




               इन्सान स्वार्थ में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं जिससे वातावरण में प्राण बायु की कमी तो हो ही रही है साथ में मौसम भी अनियमित होने लगा है | समय परवर्षा न होना, आंधीतूफान, अधिकगरमी, अधिक ठण्डा होना सब प्रकृति में असंतुलन के कारण हो रहा है| इन्सान अपना शौक पूरा करने के पौधों को बोनसाई बनाकर गमले में लगा लिया है| ऐसा ही एक बन्साई पौधा इन्सान को कह रहा है--

युगों युगों से देते आये हैं
जीवन वायु तुम्हे ,
किन्तु मानव ! तुम अकृतग्य हो
कभी नहीं समझे हमें |
था मस्तक हमारा इतना ऊँचा
मानो, चाहते नभ को छूना
काट छाँट कर हमें तुमने
बना दिया पेड़ छोटा बौना |
उखाड़ कर रख लिया हाथ में
चाहते हो क्या दिखाना ?
हम न जिन्दा रहेंगे तो
मुश्किल होगा तुम्हारा जीना |
मानव हो ! समझो तुम
दानव जैसा काम न करो,
किया जो किया, भूल जाओ
हरदिन अब पेड़ का सेवा करो |
काटो ना एक भी पेड़ अब
जंगल का संरक्षण करो
वनस्पति ही जीवन का आधार है
उसका सदा संवर्धन करो |

कालीपद ‘प्रसाद’

Saturday 23 July 2016

ग़ज़ल/गीतिका

उस ने सोचा सही आदमी की तरह
भावना से भरा दिल नदी की तरह  |

हर समर जीतना, है नहीं लाज़मी
मैं न माना है, बेचारगी की तरह |

अडचनों से कभी, हम डरे ही नहीं
हम ने देखा नहीं, जिंदगी की तरह|

इंतजारों  के पल तो, गुज़रता नहीं
हर घडी बीतती, चौजुगी की तरह |

होती वर्षा कभी, मूसलाधार भी
नाली बहती है क्रोधी, नदी की तरह |

दौड़ के होड़ में, था वही अप्रतिम
तेज भागा वही, बारगी की तरह |

बारगी – घोड़ा
कालीपद 'प्रसाद'

Sunday 17 July 2016

गीतिका


ग़ज़ल/गीतिका(बिना रदीफ़)

अच्छे कर्मो का होता अच्छा ही परिणाम
जिसने किया बुरा काम वही भोगा अंजाम |
मानव जन्म मिला है भाई करो न बर्बाद
भजते↓ रहो राम कृष्ण मिल जायेगा↓ देव धाम |
ग्रीष्म काल में आती हाट में, फलों की बहार
आडू, लीची, अनार मीठा, उनमे नृप आम |
खाली दिमाग शैतान का↓ घर कहते प्रज्ञ जन
उद्यमी↓ को चौबिश घन्टे पड़ता है अयाम |
मीठा मधुर सुगन्धित है पौष्टिक आमा रस
पीने से संतोष मिले बढ़ जाता है काम|
अयाम -समय की कमी


कालीपद'प्रसाद'

Friday 8 July 2016

मुक्तक







हर दिन की नवीनता में, सुन्दरता होती है
मुरझाये फुल के बदले, खिली नयी कली है
परिवर्तन ही सुन्दरता, प्रकृति का यह नियम
सुन्दरतम* की खोज में, आत्मा जन्मों भटकती है |


सुन्दरतम –सबसे सुन्दर –परमात्मा 

कालीपद 'प्रसाद'

Sunday 3 July 2016

मुक्तक

इंसानी नस्ल नष्ट न हो, कोशिश होनी चाहिए
जल, जीवन, जंगल सह, एक नई धरती चाहिए
अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों की, कोशिशें रंग लायगी
अरबों ग्रह में से एक ऐसी, धरती होनी चाहिए |
© कालीपद ‘प्रसाद’

Friday 1 July 2016

ग़ज़ल

दिल के धड़कनों को कम करना चाहता हूँ
आज घटित घटना को विसरना चाहता हूँ |
जीवन में घटी है कुछ घटनाएँ ऐसी
सूखे घावों को नहीं कुतरना चाहता हूँ |
यादों की बारातें आती है तन्हाई में
तन्हाई दूर मैं करना चाहता हूँ |
नुकिले पत्थर हैं कदम कदम पर लेकिन
मखमल के विस्तर में नहीं मरना चाहता हूँ |
जिंदगी का सफ़र तो इतना भी आसान नहीं
सदा सफ़र में धीरज धरना चाहता हूँ |
रब के ‘प्रसाद’ से जिंदगी चलती जाए
उनको झुककर सजदा करना चाहता हूँ |

कालीपद ‘प्रसाद’

©