Friday 5 February 2016

तुम्हारी यादें

टूट गया इस जनम का
तुम्हारा और मेरा रिश्ता ,
बेरहम मृत्यु ने तोड़ दिया
हमारा भौतिक जग-रिश्ता,
न मैं पति, न तुम मेरी पत्नी
अब तुम हो एक दैविक आत्मा
मैं मानव के रूप में हूँ एक जीवात्मा |

अलविदा कह कर तुम चली गई
पर रिश्तों का अहसास छोड़ गई ,
जिन पलों को हम ने साथ-साथ जीये,
वो आत्मीयता, वो गहराई  
जो हमने आत्मसात किये ,
जीवन के अंतिम क्षण तक
उसे कोई छीन नहीं पायगा |

अहसास होता है मुझे
गभीर निस्तब्ध निशा में
चुपके से तुम आती हो ,
पास में बैठकर नि:शब्द
अतीत के मधुर स्मृतियों की
किस्सों को सुनाती हो |
मन्त्र मुग्ध होकर मैं
एक मूक श्रोता बन जाता हूँ ,
आसपास तुम्हे ढूंढ़ता हूँ
आँखें तरसती है तुम्हारे दीदार को  

पर तुम तो अदृश्य रहती हो |

कालीपद 'प्रसाद'

3 comments:

  1. विि के विधान के आगे किसी की नहीं चलती।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-02-2016) को "घिर आए हैं ख्वाब" (चर्चा अंक-2244) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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