Saturday 17 September 2016

कर्मणि अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

कर्मणि अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन 

भाग इंसान भाग
तेरा भाग्य तभी उठेगा जाग,
सुस्त पड़ा सोता रहेगा
यह जग तेरे आगे निकल जायगा |
यह शरीर मिला है तुझे
इसका कुछ कर्म है
हर अंग का कुछ धर्म है
उसका तू पालन कर |
श्रीकृष्ण ने कहा,
“बिना फल की इच्छा
तू कर्म कर .......”
किन्तु बिना फल की इच्छा,
तेरी कर्म करने की इच्छा जायगी मर |
इसीलिए तू फल की इच्छा कर
और कुछ तो कर्म कर !
जगत में .....
तू है एक विद्यार्थी
सदा एक शिक्षार्थी,
पढ़ना, लिखना, सीखना
फिर हर परीक्षा में पास होना
लेकर प्रभु का नाम
है यही तेरी नियति, तेरा काम |
परीक्षा कक्ष में ...
जब तक कापी कलम
तेरे हाथ में हैं,
सब कुछ तेरे वश में हैं |
जो मन करे, तू लिख
न मन करे, न लिख
पर ध्यान रख
जैसा लिखेगा
वैसा फल मिलेगा...
कापी तूने निरीक्षक को दिया,
तेरे हाथ से सब कुछ निकल गया |
अब सब कुछ परीक्षक के हाथ में है |
जितना अंक देता है,
परीक्षा कक्ष में किये
वही तेरा कर्मफल है |
गलत मत समझ तू
श्रीकृष्ण ने सही कहा है,
तेरा काम परीक्षा देना है
परीक्षक का काम फल देना है;
परीक्षा देने(कर्म) का अधिकार
तेरे पास है,
फल देने का अधिकार
परीक्षक के पास है |
सबको अपने कर्मों का
सही फल मिलता है
“जैसा कर्म करता इंसान
वैसा फल देता भगवान् ” |
© कालीपद ‘प्रसाद

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-09-2016) को "मा फलेषु कदाचन्" (चर्चा अंक-2469) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. bahut sundar baat kahi aapne rachna ke madhym se ...

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