Wednesday 6 December 2017

ग़ज़ल

तारीफ़ से हबीब कभी तर नहीं हूँ’ मैं
मुहताज़ के लिए कभी’ पत्थर नहीं हूँ’ मैं |
वादा किया किसी से’ निभाया उसे जरूर
इस बात रहनुमा से’ तो’ बदतर नहीं हूँ’ मैं |
वो सोचते गरीब की’ औकात क्या नयी
जनता हूँ’ शाह से कहीं’ कमतर नहीं हूँ’ मैं |
जनमत ने रहनुमा को’ जिताया चुनाव में
हर जन यही कहे अभी’ नौकर नहीं हूँ’ मैं |
अल्लाह ने दिया मेरा’ जीवन, करीम हैं
उन्नत नसीब लान से ऊपर नहीं हूँ’ मैं |
समझो मुझे प्रवाहिनी’ सरिता, बुझाती’ प्यास
खारा नमक भरा हुआ’ सागर नहीं हूँ’ मैं |
हर बात पर विकाश की’ बातें नहीं मैं’ की
मंत्री या’ बेवफा को’ई’ रहबर नहीं हूँ’ मैं |
इस देश की वजूद, हिफाज़त के’ वास्ते
खुश हो चढ़ूँ सलीब पे’, कायर नहीं हूँ’ मैं |
शब्दार्थ : लान=आजार वैजन के खुबसूरत पर्वत
रहबर-नेता ,अगुआ ; सलीब=सूली
कालीपद'प्रसाद

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